Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
१८२
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
६४० सुगमं ।
* सो चेव सत्तमाए पुढवीए रइयो गुणिदकम्मंसिओ अंतोमुहुत्तेणेव तेसिं चेव उक्कस्सपदेससंतकम्मं होहिदि त्ति उक्कस्सजोगेण उक्कस्ससंकिले से चणीदो, तदो तेण रहस्सकाले सेसे सम्मत्तमुप्पाइयं । पुणो सो चेव सव्वलहुमणंताणुबंधीणं विसंजोएदुमादत्तो तस्स चरिमट्ठिदिखंडयं चरिमसमयसंहमाणयस्स तेसिमुकस्सो पदेस संकमो ।
६ ४१. एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा—सो चेवाणंतरपरूविदलक्खणो सत्तमपुढवीए गेरइओ गुणिदकम्मंसिओ पयदकम्माणमुक्कस्सपदेससंकमसामिओ होइ ति तत्संबंधो । सो वुण कदमम्मि अवत्थाविसेसे कदरेण वावारविसेसेण परिणदो पयदुक्कस्ससंकमसामित्तमल्लियदि त्ति आसंकाए इदमुत्तरं 'अंतोमुहुत्ते ' इच्चादि । अंतोमुहुत्तेण णेरइयचरिमसमयम्मि तेसिं चैव अणतारणुबंधीणमोघुकस्सयं पदेससंतकम्मं होहिदि त्ति दम्म अंतरे जहासंभवमुकस्सजोगेणुकस्ससंकिलेससहगदेण परिणदो त्ति भणिदं होइ । किमट्ठे मेसो उकस्संजोगमुकस्ससंकिलेसं वा णिज्जदे ? ण, बंधेण बहुपोग्गलग्गहण बहुदव्वुकड्डणणिमित्तं च तहा करणादो । तदो तेण रहस्सकालेण सम्मत्तमुप्पादमिच्चादि सुत्तावयव
६४०. यह सूत्र सुगम है ।
* उसी सातवीं पृथिवीके गुणितकमाशिक नारकीके अन्तर्मुहूर्तकालके द्वारा उन्हीं अनन्तानुबन्धियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होगा । किन्तु अन्तर्मुहूर्त पहले ही वह उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट संक्लेश से परिणत हुआ । अनन्तर उसने स्वल्प काल शेष रहनेपर सम्यक्त्वको उत्पन्न किया । पुनः वही अतिशीघ्र अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करनेके लिए उद्यत हुआ उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रम करते समय अनन्तानुबन्धियों का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है ।
४१. इस सूत्र के अर्थका कथन करते हैं। यथा- वहीं पहले कहे गये लक्षणवाला सातवीं पृथिवीका गुणितकर्मशिक नारकी जीव प्रकृत कर्मोंके उत्कृष्ट प्रदेसंक्रमका स्वामी है इस प्रकार सूत्रार्थका सम्बन्ध है | परन्तु वह किस अवस्थाविशेषमें किस व्यापार विशेष से परिणत होकर प्रकृत उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके स्वामित्वको प्राप्त करता है ऐसी आशंका होनेपर यह उत्तर है- 'अन्तर्मुहूर्तके द्वारा' इत्यादि । अन्तर्मुहूर्तके द्वारा नारकियोंके अन्तिम समयमें उन्हीं अनन्तानुबन्धियोंका घ उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होगा कि इसी बीच यथासम्भव उत्कृष्ट संक्लेशके साथ प्राप्त हुए उत्कृष्ट योगसे परिणत हुआ। यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका – यह उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट संक्लेशको किसलिए प्राप्त कराया गया है ?
समाधान — नहीं, क्योंकि बन्धके द्वारा बहुत पुद्गलोंका ग्रहण करनेके लिए और बहुत पुद्गलोंका उत्कर्षण करनेके लिए उस प्रकार कराया गया है ।