Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६३५०. सुगमं । .
* अणदरो।
६ ३५१. मिच्छाइट्ठी सम्माइट्ठी वा सामिओ ति. भणिदं होइ । एवमोघेण सामित्तं गदं। मणुसतिए एवं चे। णवरि बारसक०-णबणोक० अवत्तसंकमो कस्स ! अण्णदरस्स सव्योवसामणादो परिवदमाणयस्स । सेसमग्गणासु बिहत्तिभंगो ।
एवं सामित्तं समत्तं 8 एत्तो एयजीवेण कालो।
$ ३५२. एतो सामित्तविहासणादो उवरिमेयजीवेण कालो विहासियव्यो, तदणंतरपरूवणाजोगत्तादो त्ति वुत्तं होइ ।
* मिच्छत्तस्स भुजगारसंकामो केवचिरं कालादो होदि ? ६३५३. सुगम। * जहणणेण एयसमओ। ..
..
६ ३५०. यह सूत्र सुगम है। * अन्यतर जीव होता है।
६ ३५१. मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि कोई भी जीव स्वामी है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है। इस प्रकार ओघसे स्वामित्व समाप्त हुआ।
मनुष्यत्रिकमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्य संक्रमका स्वामी कौन है ? सर्वोपशमनासे गिरनेवाला अन्यतर जीव स्वामी है। शेष मार्गणाओंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है।
विशेषार्थ—ोघप्ररूपणामें बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यपदका संक्रामक जो सर्वोपशामनासे गिरते समय विवक्षित प्रकृतियोंके संक्रमस्थलके आनेके पूर्व मरकर देव हो जाता है वह भी होता है। किन्त मनुष्यत्रिकमें यह इस प्रकारसे प्राप्त हुआ स्वामित्व सम्भव नहीं है। इतनी ही यहाँ पर ओघ प्ररूपणसे विशेषता जाननी चाहिए, इनमें शेष सब कथन ओघप्ररूपणके समान है यह स्पष्ट ही है । मनुष्यत्रिकको छोड़कर नरकगति, तिर्यञ्चगति और देवगति तथा उनके अवान्तर भेदोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग बन जानेसे उसे अनुभागविभक्तिके समान जाननेकी सूचना की है । तथा इसी प्रकार अन्य मार्गणाओंमें भी अनुभागविभक्तिके समान जाननेकी सूचना की है।
इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। * अब आगे एक जीवकी अपेक्षा कालको कहते हैं।
६३५२. 'एत्तो' अर्थात् स्वामित्वका कथन करनेके बाद आगे एक जीवकी अपेक्षा कालका ब्याख्यान करना चाहिए, क्योंकि यह उसके अनन्तर कथन करने योग्य है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* मिथ्यात्वके भुजगारसंक्रामकका कितना काल है ? . ६ ३५३. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।