Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गा० ५८ ]
उत्तरपयडिअणुभागसंक मे वड्डीए समुक्कित्तणा
१४३
आदादि जाव णवत्रजा त्तिविहत्तिभंगो । णरि अगंतागु०४ ओघं । अणुद्दिसादि जाव सव्वट्ठा त्ति मिच्छत्त० - सोलसक० गणोक० जह० हाणी अाणं च सरिसं । एवं जाव० ।
एवमप्पा हुए समते पदणिक्खेवो समत्तो ।
* वड्डीए तिरिए अणिओगद्दाराणि समु वित्तणा सामित्त मप्पाबहुत्रं च । ९५२७. पदणिक्खेवविसेसो वड्डी णाम । तत्थेदाणि तिणि चैवाणिओगद्दाराणि भवंति, सेसाणमेत्थेबंतब्भावदंसणादो | एवमुद्दिसमुत्तिणादि अणियोगदा रेसु समुत्तिणा ताव करदित्ति जाणावणमिदमाह -
* समुक्कित्तणा ।
६५२८. सुगमं ।
* मिच्छत्तस्स अत्थि छव्विहा वड्डी, छव्विहा हाणी अवद्वाणं च । ५२६. काओ ताव छबड्डीओ' ? अनंतभागवद्वि-असंखेज्जभागवड्डि-संखेजभागवडिसंखेज्जगुणवद्वि-असंखेज्ञगुणवड्डि-अनंतगुणवसिण्णिदाओ । एवं हाणीओ वि वत्तव्त्राओ । तत्थ छबड्डीणं परूवणा जहा अणुभागविहत्तीए तहा णिरवसेसविभक्तिके समान भङ्ग है । मनुष्यत्रिमें ओघके समान भङ्ग हैं । इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेदका भङ्ग छह नोकषायों के समान है । श्रनतकल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग हैं । इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग घके समान है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य हानि और स्थान ये दोनों पद समान हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त होनेपर पदनिक्षेप समाप्त हुआ ।
* वृद्धिमें तीन अनुयोगद्वार होते हैं— समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व |
§ ५२७. पदनिक्षेप विशेषको वृद्धि कहते हैं । उसमें ये तीन ही अनुयोगद्वार होते हैं, क्योंकि शेष अनुयोगद्वारोंका इन्हीं में अन्तर्भाव देखा जाता है । इस प्रकार सूचित किये गये समुत्कीर्तना आदि अनुयोगद्वारों में से सर्व प्रथम समुत्कीर्तनाका कथन करते हैं इस बातका ज्ञान कराने के लिए यह सूत्र कहते हैं
* अब समुत्कीर्तनाको कहते हैं ।
५२. यह सूत्र सुगम है ।
* मिथ्यात्वकी छह प्रकारकी वृद्धि, छह प्रकारकी हानि और अवस्थान है । शंका- छह वृद्धियाँ कौन हैं ?
समाधान — अनन्तभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभाग वृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवद्धि इन नामोंवाली छह वृद्धियाँ हैं ।
६५२६. इसी प्रकार छह हानियोंका भी कथन करना चाहिए। उनमें से छह वृद्धियोंकी प्ररूपणा जिस प्रकार अनुभागविभक्तिमें की है उसी प्रकार सबकी सब यहाँ पर करनी चाहिए,
१. श्रा० प्रतौ छत्रड्डीर्णं परूवणात्र इति पाठ ।