Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ॐ असंखेज गुणहाणिसंकामया असंखेनगुणा।।
६ ५५६. पुवाणुपुबीए चरिमसंखेजभागवडिकंडयस्सासंखेजदिमागे चेव संखेजभागहाणि-संखेजगुणहाणीओ समप्पंति । तेण कारणेण चरिमसंखेजभागवडिकंडयस्स सेसा असंखेजा भागा संखेजा संखेजगुणवड्डिसयलद्धाणं च असंखेजगुणहाणिसंकामयाणं विसयो होइ । तदो तत्थ विसयाणुसारेण अंगुलस्सासंखेजभागमेतो गुणगारो तप्पाओग्गासंखेजरूवमेत्तो वा।
* अणंतभागवडिसंकामया असंखेजगुणा। . .
५५७. तं कथं ? पुबुत्तासेसहाणिसंकामयरासी एयसमयसंचिंदो, खंडयघादाणं तस्समयं भोत्तणण्णत्थ हाणिसंकमसंभवादो। एसो वुण रासी आवलियाए असंखेजभागमत्तकालसंचिदो, पंचण्हं बड्डीणमावलियाए असंखेजदिभागमेतकालोवएसादो। तदो कंडयमत्तविसयत्ते वि संचयकोलपाहम्मेणासंखेजभागमेत्तमेदेसि सिद्धं । गुणगारपमाणमत्थासंखेजा लोगा ति वत्तब्बं । कुदो एवं चे ? हाणिपरिणामाणं सुट्ट दुल्लहत्तादो, वडिपरिणामाणमेव पायेण संभवादो।
ॐ असंखेजभागवडिसंकामया असंखेजगुणा।
* उनसे असंख्यातगुणहानिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
६५५६. पूर्वानुपूर्वीके अनुसार अन्तिम संख्यातभागवृद्धि काण्डकके असंख्यातवें भागमें ही संख्यातभागहानि और संख्यातगणहानि समाप्त होती हैं। इस कारणसे अन्तिम संख्यातभा वृद्धिकाडक शेप असंख्यात बहुभाग और संख्यातगुणवृद्धिका सकल अध्वान असंख्यातगुणहानिके संक्रामकोंका विषय है । इसलिए यहाँ पर विषयके अनुसार अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण अथवा तत्प्रायोग्य असंख्यात अङ्कप्रमाण गुणकार है।
* उनसे अनन्तभागवृद्धिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं।
५५७. क्योंकि पूर्वोक्त समस्त हानियोंकी संक्रामकराशि एक समयमें सञ्चित है, क्योंकि काण्डकघातोंके उस समबको छोड़कर अन्यत्र हानिसंक्रम सम्भव नहीं है । परन्तु यह राशि प्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा सञ्चित हुई है, क्योंकि पाँच वृद्धियोंके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालका उपदेश पाया जाता है। इसलिए इसका विषय काण्डकमात्र रहते हुए भी सञ्चयकालको प्रमुखतासे पूर्वोक्त हानियोंके संक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं यह सिद्ध होता है । यहाँ पर गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है ऐसा कहना चाहिए।
शंका-ऐसा क्यों है ?
समाधान-क्योंकि हानिके कारणभूत परिणाम अत्यन्त दुर्लभ हैं। प्रायः करके वृद्धिके कारणभूत परिणाम ही सम्भव है।
* उनसे असंख्यातभागवृद्धिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।