Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सत्थाणभागाभागो गुणसंकमदव्वं होइ । सेसेयभागमेत्तमुव्वेलणसंकमदव्वं होइ । सम्मामिच्छत्तदव्यमसंखेज्जाणि खंडाणि कादण तत्थ बहुभागा सव्वसंकमदव्वं होइ । सेसमसंखेजाणि खंडाणि कादण तत्थ वहुखंडपमाणं गुणसंकमदच होइ । सेसमसंखे०खंडाणि कादूण तत्थ बहुभागा अधापवत्तसंकमदव्य होइ। सेसमसंखे०खंडाणि कादूण तत्थ बहुभागा विज्झादसंकमदब्य होइ । सेसेयभागमेत्तमुव्वेल्लगसंकमदव्य होइ । एवं बारसक०-इत्थि-णवंसयवेदारइ-सोगाणं । णवरि उव्वेल्लणसंकमो णत्थि। पुरिसवेद-कोह-माण-मायासंजलणाणमप्पप्पणो दबमसंखेजखंडाणि कादण तत्थ बहुभागा सव्वसंकमद होइ । सेसेयखंडपमाणमधापवत्तसंकमदम्ब होइ । हस्स-रइ-भय-दुगुंछाणमप्पप्पणो दबमसंखेजखंडाणि कादण तत्थ बहुखंडपमाणं सब्यसंकमदव्य होइ । सेसमसंखेजाणि खंडाणि कादूण तत्थ बहुखंडपमाणं गुणसंकमदव्य होइ । सेसेयभागमेत्तमधापवत्तसंकमद होइ । लोहसंजलणस्स णत्थि भागाभागविहाणं । किं कारणं ? एगो चेव अधापवत्तसंकमो ति । एवं मणुसतिए। आदेसभागाभागो जहण्णभागाभागो च जाणिदूण णेदव्यो । तदो पदेसभागाभागो समत्तो ।
२४. सव्वसंकमणोसव्वसंकमो ति दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडीणं सव्वुक्कस्सयं पदेसग्गं संकममाणयस्स सव्वसंकमो । तदूर्ण संकामेमाणस्स णोसव्वसंकमो । एवं जाव० ।
करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण गुणसंक्रमद्रव्य है । तथा शेष एक भागप्रमाण उद्वेलनासंक्रम द्रव्य है। सम्यग्मिथ्यात्वके द्रव्यके असंख्यात खण्ड करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण सर्वसंक्रम द्रव्य है। शथ एक भागके असंख्यात खण्ड करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण गुणसंक्रम द्रव्य है । शेष एक भागके असंख्यात खण्ड करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण अधःप्रवृत्तसंक्रम द्रव्य है। शेष एक भागके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण विध्यातसंक्रमद्रव्य है । तथा शेष एक भागप्रमाण उद्वेलनासंक्रमद्रव्य है। इसीप्रकार बारह कषाय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, और शोकके विषयमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इन प्रकृतियोंका उद्वेलनासंक्रम नहीं होता। पुरुषबेद, क्रोधसंज्वलन, मानसंज्वलन और मायासंज्वलनके अपने अपने द्रव्यके असंख्यात खण्ड करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण सर्वसंक्रमद्रव्य है। तथा शेष एक भागप्रमाण अधःप्रवृत्तसंक्रमद्रव्य है । हास्य, रति, भय और जुगुप्साके अपने अपने दयके असंख्यात खंड करके उनमेंसे बहभागप्रमाण सर्वसंक्रमद्रव्य है। शेष एक भागके असंख्यात खण्ड करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण गुणसंक्रमद्रव्य है । तथा शेष एक भागप्रमाण अधःप्रवृत्तसंक्रमद्रव्य है। लोभसंज्वलनका भागाभागविधान नहीं है, क्योंकि इसमें एकमात्र अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए । श्रादेश भागाभाग और जघन्य भागाभाग जानकर लेजाना चाहिए। इस प्रकार प्रदेशभागाभाग समाप्त हुआ।
६२४. सर्वसंक्रम और नोसर्वसंक्रमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके सर्वोत्कृष्ट प्रदेशाप्रका संक्रम करनेवाले जीवके सर्वसंक्रम होता है। तथा इससे न्यून प्रदेशाग्रका संक्रम करनेवाले जीवके नोसर्वसंक्रम होता है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गण तक जानना चाहिए।