Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६२५. उक्कस्ससंकमो अणुकस्ससंकमो जहण्णसंकमो अजहण्णसंकुमो त्ति विहत्तिभंगो । णवरि कामयालावो कायव्यो ।
२६. सादि-अणादि-धुव-अद्भुवाणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-सम्म०-सम्मामिच्छत्ताणमुक्क०-अणुक्क०-जह०-अजहण्णपदेससंकमो किं सादिओ ४ १ सादी अद्भवो। सेसपयडीणमुक्क०-जह०पदे० किं सादि०४ १ सादी अद्ध वो । अणु०-अजह०पदे० किं सादि०४ ? सादिओ अणादिओ धुवो अद्धयो वा । सेसमग्गणासु सव्वपय० उक्क०-अणुक्क०-जह०-अजह० पदे०संक० कि० सादि०४ ? सादी अद्ध वो । एवं जाव० ।
२७. एवमेदेसिमणिओगद्दाराणं सुगमत्ताहिप्पाएण परूवणमकादूण संपहि सामित्तपरूवणट्ठमुत्तरं सुतपबंधमाह
एत्तो सामित्तं।
६२५. उत्कृष्टसंक्रम, अनुत्कृष्टसंक्रम, जयन्यसंक्रम और अजघन्यसंक्रमका भङ्ग प्रदेशविभक्तिके समान है। इतनी विशेषता है कि प्रदेशसत्कर्मके स्थान पर प्रदेशसंक्रमका आलाप करना चाहिए।
६२६. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रम क्या सादि है,अनादि है,ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। शेष प्रकृतियोंका उकृष्ट और जघन्य प्रदेसंक्रम क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि, और अध्रुव है। अनुत्कृष्ट और अजघन्य प्रदेशसंक्रम क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि, अनादि, धव और अध्रव है। शेष मार्गणाओंमें सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रम क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक यथायोग्य जानना चाहिए।
विशेषार्थ-मिथ्यात्व प्रकूति सर्वदा प्रतिग्रह प्रकृति नहीं है,तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति ही सादि हैं, अतः इनके उत्कृष्ट श्रादि चारों सादि और अध्रव हैं । अब रहीं शेष प्रकृतियाँ सो इनका उत्कष्ट प्रदेशसंक्रम गुणितकर्माश जीवके और जघन्य प्रदेशसंक्रम क्षपितकर्माशजीवके यथायोग्य स्थानमें होते हैं, अतः ये भी सादि और अध्रुव हैं। तथा इनके अनुत्कृष्ट और अजघन्य प्रदेशसंक्रम उपशमश्रेणिके प्राप्त होनेके पर्व तक अनादि हैं, उपशमश्रोणिसे गिरनेके बाद सादि हैं तथा भव्योंकी अपेक्षा अध्रुव और अभव्योंकी अपेक्षा ध्रुव हैं। गतिसम्बन्धी अवान्तर मार्गणाऐं कादाचित्क हैं, अतः इनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट आदि चारों सादि और अध्रुव हैं। इसी प्रकार अन्य मार्गणाओंमें भी यथायोग्य जान लेना चाहिए।
६२७. इस प्रकार ये अनुयोगद्वार सुगम हैं इस अभिहायसे प्ररूपण न करके अब स्वामित्वका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं
* आगे स्वामित्वको कहते हैं।