Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
* अंतोमुहुत्तेण मणुसेसु आगदो ।
९ ३२. पंचिदियतिरिक्खेसु तसट्ठिदि समाणिय पुणो एइ दिएसुप्पजिय अंतोमुहुत्त
काले मसग मागदो ति भणिदं होइ ।
* सव्वलहुं दंसणमोहणीयं खवेदुमाढतो ।
सव्वलहुणिद्देसेण गन्भादि अवस्सा णमंतो मुहुत्तम्भहियाणमुबरि
९ ३३. एत्थ दंसणमोहवणाए अब्भुट्टिदो त्ति घेत्तव्त्र ।
जाधे मिच्छतं सम्मामिच्छत्तं सव्वं संछुभमाणं संक्रुद्धं तावे तस्स मिच्छत्तस्स उक्कस्सओ पससंकमो ।
३४. पुव्वत्तविहारोणागतूण मणुसे सुप्पञ्जिय सव्वलहुं दंसणमोहक्खवणाए अब्भुट्ठिदेण जाधे मिच्छत्तसव्वदव्वमुदयावलियवज्जं सम्मामिच्छत्तस्सुवरि सव्वसंकमेण संक्रुद्ध ताधे तस्स जीवस्स मिच्छत्तस्स उकस्सओ पदेससंकमो होइ । तत्थ गुणसेढिणिञ्जरासहिदगुणसंक्रमदव्वेणूणदिवढ गुणहाणिमेत्तुकस्ससमयपबद्धाणमेकवारेणेव सम्मामिच्छत्तसरूवेण संकतिदंसणादो ।
* सम्मत्तस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? ३५. सुगमं ।
* पुनः अन्तर्मुहुर्तमें मनुष्योंमें आ गया ।
§ ३२. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में त्रसस्थितिको समाप्त करके पुनः एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्तकालमें ही मनुष्यों में आ गया यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है ।
* वहाँ अतिशीघ्र दर्शनमोहनीयकी क्षपणा के लिए उद्यत हुआ ।
९ ३३. यहाँ पर सूत्रमें जो 'सव्वलहुं' पदका निर्देश किया है उससे गर्भसे लेकर आठ वर्ष और मुहूर्त के बाद दर्शनमोहनीयकी क्षपणा के लिए उद्यत हुआ ऐसा ग्रहण करना चाहिए ।
* जिस समय मिथ्यात्वको सम्यग्मिथ्यात्वमें सर्वसंक्रमरूपसे संक्रमित किया उस समय उसके मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है ।
३४. पूर्वोक्त विधि कर और मनुष्योंमें उत्पन्न होकर अतिशीघ्र दर्शनमोहनीयकी क्षपरणा के लिए उद्यत हुए उसने जब मिथ्यात्वके उदद्यावलिके सिवा अन्य सब द्रव्यको सम्यग्मिध्यात्वमें सर्वसंक्रमके द्वारा संक्रमित किया तब उस जीवके मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है, क्योंकि वहाँ पर गुणश्रेणि निर्जरा सहित गुणसंक्रम द्रव्यसे न्यून डेढ़ गुणहानिप्रमाण उत्कृष्ट समयप्रबद्धोंका एक बारमें ही सम्यग्मिथ्यात्वरूपसे संक्रम देखा जाता है ?
* सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेशस क्रमका स्वामी कौन है ?
६ ३५. यह सूत्र सुगम है ।