Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ णवरि पंचिंदि तिस्क्खिअपज०-मणुसअपज० अणुद्दिसादि सब? ति सत्तावीसण्हं पयडीणं अस्थि उक्कस्सओ पदेससंकमो । एवं जाव० । एवं जहण्णयं पिणेदव्यं ।
२२. भागाभागो दुविहो-जीवविसयो पदेसविसओ च । तत्थ जीवभागाभागमुवरि जहावसरमणुवत्तइस्सामो। पदेसभागाभागो ताव वुच्चदे । सो दुविहो-जहण्णओ उकस्सओ च । उकस्से पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओधेण मोह. अट्ठावीसंपयडीणं पदेसविहत्तिभागाभागभंगो। णवरि दंसणतियचदुसंजलणभागाभागे सम्मत्त-लोहसंजलणदव्यमसंखे०भागो।
६२३. एस्थ सत्थाणभागाभागे कीरमाणे मिच्छत्तदबमसंखेजाणि खंडाणि कादण तत्थ बहुभागा सव्वसंकमदळ होइ । .सेसमसंखेज्जे भागे कादूण तत्थ बहुभागा गुणसंकमदव्वं होइ। सेसेयभागो विज्झादसंकमद होइ। सम्मत्तदव्यमसंखेज्जे भागे कादूण तत्थ बहुभागा अधापवत्तसंकमदव्वं होइ । सेसमसंखेजे भागे काण तत्थ वहुभागा सव्वसंकमदव्वं होइ । सेसमसंखेज्जे भागे कादूण तत्थ बहुभागा गतियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इसी प्रकार जघन्य प्रदेशसंक्रमका भी कथन करना चाहिए।
विशेषार्थ—पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें सम्यक्त्वकी प्राप्ति न होनेसे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट और जघन्य किसी प्रकारका प्रदेशसंक्रम नहीं पाया जाता। तथा अनुदिशादि देवोंमें मिथ्यात्वगुणस्थान न होनेसे सम्यक्त्वप्रकृतिका किसी भी प्रकारका प्रदेशसंक्रम नहीं पाया जाता । इन मार्गणाओंमें इसीलिए सत्ताईस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशसंक्रम कहा है। किन्तु इनके सिवा गतियोंके जितने अवान्तर भेद हैं उनमें मिथ्यात्व और सम्यक्त्व दोनोंकी प्राप्ति सम्भव है, इसलिए उनमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशसंक्रम कहा है।
६२२. भागाभाग दो प्रकारका है-जीवविषयक भागाभाग और प्रदेशविषयक भागाभाग । उनमेंसे जीवभागाभागको यथावसर आगे बतलावेंगे। यहाँ पर प्रदेशभागाभागको कहते हैं। वह दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट भागाभाग प्रदेशविभक्तिके उत्कृष्ट भागाभागके समान है। इतनी विशेषता है कि तीन दर्शनमोहनीय और चार संज्वलनोंके भागाभागमें सम्यक्त्व और लोभसंज्वलनका द्रव्य असंख्यातवें भागप्रमाण है।
६२३. यहाँ पर स्वस्थानभागाभागके करने पर मिथ्यात्वके द्रव्यके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण सर्वसंक्रम द्रव्य है। शेष एक भागके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण गुणसंक्रमद्रव्य है। तथा शेष एक भागप्रमाण विध्यातसंक्रम द्रव्य है । सम्यक्त्वके द्रव्यके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण अधःप्रवृत्तसंक्रम द्रव्य है। शेष एक भागके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभागप्रमाण सर्वसंक्रमद्रव्य है। शेष एक भागके असंख्यात भाग