Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
* पदेससंकमो ।
६ १. पयडि-विदि-अणुभागसंकमविहासणाणंतरमिदा णिभवसरपत्तो पदेससंकमो 'गुणatri at गुणविसि इदि गाहासुत्तात्रयवपडिबद्धो विहासियन्त्रो त्ति अहिया संभालणसुत्तमेदं । एवमहियस्स पदेससंकमस्स सरूवविसेसणिद्धारणमुत्तरो पुच्छाणिदेसो
* तं जहा ।
६ २. सुगमं ।
* मूलपदेससंकमो णत्थि ।
९ ३. कुदो सहावदो चैत्र मूलपयडीणमण्णोण्णविसयसंकंतीए असंभवादो । * उत्तरपयडिपदेससंकमो ।
§ ४. उत्तरपयडिपदेससंकमो अस्थि ति सुत्तत्थसंबंधो । कुदो तासिं समयाविरोहेण परोप्परविसयसंकमस्स पडिसेहाभावादो ।
अट्ठपदं ।
५. तत्थ उत्तरपयडिपदेससंकमे अट्ठपदं भणिस्सामो त्ति पइण्णावकमेदं । किमट्ठ पद णाम ? तो विवखस्स पयत्थस्स परिच्छिती तमट्ठपदमिदि भणदे |
* अब प्रदेशसंक्रमको कहते हैं ।
१. प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम और अनुभागसंक्रमका व्याख्यान करनेके बाद इस समय गाथासूत्रके 'गुणहीणं वा गुणविसिद्ध" इस अवयवसे सम्बन्ध रखनेवाले अवसर प्राप्त प्रदेशसंक्रमका व्याख्यान करना चाहिए इस प्रकार यह सूत्र अधिकारकी सम्हाल करता है । इस प्रकार अधिकार प्राप्त प्रदेशसंक्रमके स्वरूपविशेषका निश्चय करनेके लिए आगेके पृच्छासूत्रका निर्देश करते हैं
* यथा
९२. यह सूत्र सुगम है ।
* मूलप्रकृतिप्रदेशसंक्रम नहीं है ।
६३. क्योंकि स्वभावसे ही मूल प्रकृतियोंके परस्पर प्रदेशोंका संक्रम असम्भव है । * उत्तरप्रकृतिप्रदेशसंक्रम हैं ।
६४. उत्तरप्रकृतिप्रदेशसंक्रम है, ऐसा सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध करना चाहिए, क्योंकि उनके परमाणुओंका समयके विरोधपूर्वक परस्पर संक्रम होनेका निषेध नहीं है ।
* उस विषय में यह अर्थपद है ।
६५. वहाँ उत्तरकृति प्रदेशसंक्रमके विषयमें अर्थपदको कहते हैं इस प्रकार यह प्रतिज्ञा
वचन है ।
शंका- पद किसे कहते हैं ?
समाधान — जिससे विवक्षित पदार्थका ज्ञान होता है उसे अर्थपद कहते हैं। आगे उसे बतलाते हैं—