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________________ १६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ * पदेससंकमो । ६ १. पयडि-विदि-अणुभागसंकमविहासणाणंतरमिदा णिभवसरपत्तो पदेससंकमो 'गुणatri at गुणविसि इदि गाहासुत्तात्रयवपडिबद्धो विहासियन्त्रो त्ति अहिया संभालणसुत्तमेदं । एवमहियस्स पदेससंकमस्स सरूवविसेसणिद्धारणमुत्तरो पुच्छाणिदेसो * तं जहा । ६ २. सुगमं । * मूलपदेससंकमो णत्थि । ९ ३. कुदो सहावदो चैत्र मूलपयडीणमण्णोण्णविसयसंकंतीए असंभवादो । * उत्तरपयडिपदेससंकमो । § ४. उत्तरपयडिपदेससंकमो अस्थि ति सुत्तत्थसंबंधो । कुदो तासिं समयाविरोहेण परोप्परविसयसंकमस्स पडिसेहाभावादो । अट्ठपदं । ५. तत्थ उत्तरपयडिपदेससंकमे अट्ठपदं भणिस्सामो त्ति पइण्णावकमेदं । किमट्ठ पद णाम ? तो विवखस्स पयत्थस्स परिच्छिती तमट्ठपदमिदि भणदे | * अब प्रदेशसंक्रमको कहते हैं । १. प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम और अनुभागसंक्रमका व्याख्यान करनेके बाद इस समय गाथासूत्रके 'गुणहीणं वा गुणविसिद्ध" इस अवयवसे सम्बन्ध रखनेवाले अवसर प्राप्त प्रदेशसंक्रमका व्याख्यान करना चाहिए इस प्रकार यह सूत्र अधिकारकी सम्हाल करता है । इस प्रकार अधिकार प्राप्त प्रदेशसंक्रमके स्वरूपविशेषका निश्चय करनेके लिए आगेके पृच्छासूत्रका निर्देश करते हैं * यथा ९२. यह सूत्र सुगम है । * मूलप्रकृतिप्रदेशसंक्रम नहीं है । ६३. क्योंकि स्वभावसे ही मूल प्रकृतियोंके परस्पर प्रदेशोंका संक्रम असम्भव है । * उत्तरप्रकृतिप्रदेशसंक्रम हैं । ६४. उत्तरप्रकृतिप्रदेशसंक्रम है, ऐसा सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध करना चाहिए, क्योंकि उनके परमाणुओंका समयके विरोधपूर्वक परस्पर संक्रम होनेका निषेध नहीं है । * उस विषय में यह अर्थपद है । ६५. वहाँ उत्तरकृति प्रदेशसंक्रमके विषयमें अर्थपदको कहते हैं इस प्रकार यह प्रतिज्ञा वचन है । शंका- पद किसे कहते हैं ? समाधान — जिससे विवक्षित पदार्थका ज्ञान होता है उसे अर्थपद कहते हैं। आगे उसे बतलाते हैं—
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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