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गा० ५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे अट्ठपदं
१६६ ® जं पदेसग्गमएणपयडिं णिजदे जत्तो पयडीदो तं पदेसग्गं णिज दि तिस्से पयडीए सो पदेससंकमो।
६६. जं पदेसग्गमण्णपयडि णिज्जदि सो पदेससंकमो ति सुत्तत्थसंबंधो । सो कस्स ? किंपडिग्गहपयडीए आहो पडिगेज्झमाणपयडीए ति आसंकिय इदमाह-'जत्तो पयडीदो' इच्चादि । जत्तो पयडीदो तं पदेसग्गमण्णपयडि णिजदे तिस्से चेव पडिगेज्झमाणपयडीए सो पदेससंकमो होइ, णाण्णपयडीए ति भणिदं होइ । एदेण परपयडिसंकतिलक्खणो चेत्र पदेससंकमो ण ओकड्डक्कड्डणलक्षणो ति जाणाविदं, द्विदि-अणुभागाणं च ओकड्डक्कडणाहि पदेसग्गस्स अण्गभावावत्तीए अणुवलंभादो । संपहि एदस्सेवत्थस्स उदाहरणमुहेण फुडोकरण?मुत्तरसुत्तमाह
ॐ जहा मिच्छत्तस्स पदेसग्गं सम्मत्ते संछुहदि तं पदेसग्गं मिच्छत्तस्स पदेससंकमो ।
६७. 'जहा' तं जहा ति भणिदं होदि । मिच्छत्तसरूवेण द्विदं पदेसग्गं जदा सम्मत्तायारेण परिणमिजदि तदा पदेसग्गं . मिच्छत्तस्स पदेससंकमो होइ, गाण्णस्से ति भणिदं होइ ।
8 एवं सव्वत्थ ।
* जो प्रदेशाग्र जिस प्रकृतिसे अन्य प्रकृतिको ले जाया जाता है वह प्रदेशाग्र यतः ले जाया जाता है इसलिए उस प्रकृतिका वह प्रदेशसंक्रम है।
६६. जो प्रदेशाग्र अन्य प्रकृतिको ले जाया जाता है वह प्रदेशसंक्रम है इस प्रकार इस सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है । वह किसका होता है, क्या प्रतिग्रह प्रकृतिका होता है या प्रतिग्राह्यमान प्रकृतिका होता है इस प्रकार आशंका करके 'जत्तो पयडीदो' इत्यादि वचन कहा है। जिस प्रकृतिसे वह प्रदेशाग्र अन्य प्रकृतिको ले जाया जाता है उसी प्रतिग्राह्यमान प्रकृतिका वह प्रदेशसंक्रम होता है, अन्य प्रकृतिका नहीं होता यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस वचन द्वारा परप्रकृतिसंक्रमलक्षण ही प्रदेशसंक्रम है, अपकर्षण उत्कर्षणलक्षण नहीं यह ज्ञान कराया गया है, क्योंकि जिस प्रकार अपकर्षण-उत्कर्षणके द्वारा स्थिति और अनुभागका अन्यरूप होना पाया जाता है उस प्रकार उन द्वारा प्रदेशाग्रका अन्यरूप होना नहीं पाया जाता।
* जैसे मिथ्यात्वका प्रदेशाग्र सम्यक्त्वमें संक्रान्त किया जाता है, अतः वह प्रदेशाग्र मिथ्यात्वका प्रदेशसंक्रम है।
६७. सूत्रमें 'जहा' पद 'तं जहा' के अर्थमें आया है ऐसा समझना चाहिए। मिथ्यात्वरूपसे स्थित हुआ प्रदेशाग्र जब सम्यक्त्वरूपसे परिणमाया जाता है तब वह प्रदेशाग्र मिथ्यात्वका प्रदेशसंक्रम होता है, अन्यका नहीं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये ।
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