Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* अण्णयरस्स ।
९ ५३८. मिच्छाइट्ठि-सम्म इट्टीणमण्णदरस्स तदुभयविसयसा मित्तसंबधो
भद हो ।
[ बंधगो ६
* अण्णदरस्स ।
६५४२. कुदो ? मिच्छाइट्ठ-सम्माइट्ठीणं तदुवलद्धीए विरोहाभावादो |
* श्रवत्तव्वसंकमो कस्स ?
६५४३. सुगमं ।
* विदियसमयउवसमसम्माइ डिस्स |
* सम्मत्त सम्मामिच्छत्तापमणतगुणहाणि संकमो कस्स १ ५३६. सुगममेदं सामित्तसंबंधविसेसा वेक्खं पुच्छासुतं ।
* दंसणमोहणीयं खवेंतस्स ।
५४०. कुदो दंसणमोहक्खवणादो अण्णत्थेदेसिमणुभागघादासंभवादो तदो अण्णविसयपरिहारेणेत्थेव सामित्तमिदि सम्ममवहारिदं ।
* अवट्ठाणसंकमो कस्स ?
६ ५४१. सुगमं ।
त्ति
* अन्यतर जीव उनका स्वामी है ।
६५३८. मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि इनमें से अन्यतरके उन दोनोंके स्वामित्वका सम्बन्ध है। यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
६५४१. यह सूत्र सुगम है ।
* अन्यतर जीव उसका स्वामी है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के अनन्तगुणहानिसंक्रमका स्वामी कौन है ?
§ ५३६. स्वामित्वके सम्बन्धविशेषकी अपेक्षा करनेवाला यह पृच्छासूत्र सुगम है ।
* दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाला जीव उसका स्वामी है ।
६५४०. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके सिवा अन्यत्र इन प्रकृतियोंका अनुभागघात होना सम्भव है, इसलिए अन्य विषयके परिहार द्वारा यहीं पर स्वामित्व है इस प्रकार सम्यके प्रकारसे श्रवधारण किया ।
* उनके अवस्थानसंक्रमका स्वामी कौन है ?
६ ५४२. क्योंकि मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टिके उसकी उपलब्धि होनेमें विरोध नहीं आता ।
* उनके अवक्तव्यसंक्रमका स्वामी कौन है ?
६५४३. यह सूत्र सुगम है ।
* द्वितीय समयवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उसका स्वामी है ।