Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ ६ ५२२. केण कारगेण ? चिराणसंतकम्मचरिमाणुभागखंडयम्मि पयदजहण्णावट्ठाणसामित्तावलंबणादो।
* जहणिया वड्डी अणंतगुणा । ६ ५२३. कुदो ? एत्तो अणंतगुणसुहुमाणुभागविसए लद्धजहण्णभावत्तादो।
* अट्ठणोकसायाणं जहणिणया हाणो अवट्ठाणसंकमो च तुल्लो थोवो।
$ ५२४. कुदो ! दोण्हमेदेसि पदाणमप्पप्पणो चरिमाणुभागखंडयविसए जहण्णसामित्तदंसणादो।
* जहणिया वड्डी अणंतगुणा। ६ ५२५. कुदो सुहुमाणुभागविसए पयदजहाणसामित्तसमुबलद्धीदो।
एवमोघो गदो। ६ ५२६. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-चारसक०-गवणोक० जह० बड्डी हाणी अवट्ठाणसंकमो च सरिसो। अणंताणु०४ ओघं । एवं सबणेरइय०-तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खतिय३-देवा जाव सहस्सार ति । पंचिंदियतिरिक्खअपज-मणुसअपज० जह० विहत्तिभंगो । सणुसतिए ३ ओघं । णवरि मणुसिणीसु पुरिसघेद० छण्णोकसायभंगो।
६५२२. क्योंकि प्राचीन सत्कर्मसम्बन्धी अन्तिम अनुभागकोण्डकके समय प्राप्त होनेवाले प्रकृत जघन्य अवस्थानविषयक स्वामित्वका यहाँ पर अवलम्बन लिया गया है।
* उससे जघन्य वृद्धि अनन्तगुणी है।
६ ५२३. क्योंकि जवन्य अवस्थानसंक्रमसे अनन्तगुणे सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी अनुभागके आश्रयसे इसका जधन्यपना प्राप्त होता है।
* आठ नोकषायोंके जघन्य हानि और जघन्य अवस्थानसंक्रम परस्पर तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं।
६५२ . क्योंकि इन दोनों पदोंका अपने अपने अन्तिम अनुभागकाण्डकके समय जघन्य स्वामित्व देखा जाता है।
* उनसे जघन्य वृद्धि अनन्तगुणी है।।
६ ५२५. क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी अनुभागमें अनन्तभागवृद्धि होने पर प्रकृत जघन्य . स्वामित्व उपलब्ध होता है।
इस प्रकार अोध प्ररूपणा समाप्त हुई। ६५२६. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कपाय और नौ नोकषायोंके जघन्य बृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थानसंक्रम तुल्य हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग आपके समान है। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, सामान्य देव और सहस्रार कल्प तकके ढेवोंमें जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अनुभाग