Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
१४४
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
मेथ विकायन्त्रा, विसेसाभावादो । संपहि हाणीणं परूवणे कीरमाणे सव्बुकस्साणुभागसंतकम्मिएण चरिमुव्यंके घादिदे पढमो अनंतभागहाणिवियप्पो होइ, तेणेव चरिम- दुचरिमुव्यंकेसु घादिदेसु विदिओ अनंतभागहाणिवियप्पो होइ । एवमणेण विहाणेण हेडा ओयारेयव्त्रं जात्र कंडयमेत्तमोइण्णस्स पच्छारणुपुत्रीए पढमसंखेञ्जभागवड्ढिड्डाणं ति । पुणो तेण सह उवरिमाणुभागे घादिदे असंखेजभागहाणिपारंभो होइ । एतो पहुड असंखेज्जभागहाणिविसओ जाव पच्छाणुपुत्रीए पढमं संखेजभागवड्ढिडाणमुप्पण्णं ति । एतो हेट्ठा घादेमाणस्स संखेज्जभागहाणिविसओ होण ताव गच्छइ जाव पच्छाणुपुत्रीए उकस्ससंखेजस्स सादिरेयद्धमेत्ता संखेज्जभागवड्डिवियप्पा परिहीणा त्ति । तत्थ पढमदुगुणहीणट्ठाणमुप्पञ्जइ । तो पहुडि संखेजगुणहाणीए विसओ होतॄण ताव गच्छइ जाव जहण्णपरित्तासंखेजछेदणयमेतद्गुणहाणीओ ट्ठा ओदिण्णाओ त्ति । तत्तो प्यहुडि असंखेज गुणहाणिविसओ होदून तात्र गच्छइ जाव पच्छाखुपुब्बीए संखेजभागवड्डि वियप्पाणमसंखेजे भागे संखेजगुणवड्डि- असंखेजगुणवड्डिसयलद्धाणं तत्तो हेट्ठिमचदुवड्डि अद्वाणं च विसईकरिय चरिमट्ठकट्ठाणं पत्तो I एत्थ चरिमाणं मोत्तूण सेसरूवूणछट्टणमेत्तं कंडयघादं करेमाणस्स असंखेजगुणहणीए चरिमवियप्पो होइ त्ति भावत्थो । पुणो चरिमट्ठकट्ठाणेण सह कंडयघादं कुणमाणस्साणंतगुणहाणी पारभदि । तो पहुडि जाव सव्वुकस्साणुभागकंडयं ति ताव घादेमाणस्स, अनंतगुणहाणिविसओ होइ । तत्तो हेट्ठिमाणुभागस्स पजवसाणट्ठाणेण सह घादावलंभादो ।
क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। अब हानियोंका कथन करने पर सबसे उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मवाले जीवके द्वारा अन्तिम ऊर्व कका घात करनेपर प्रथम अनन्तभागहानिरूप भेद होता है । उसके द्वारा अन्तिम और द्विचरम ऊव कोंका घात करने पर दूसरा अनन्तभागहानिरूप भेद होता है । इस प्रकार इस विधिसे नीचे काण्डकप्रमाण उतरे हुए जीवके पश्चादानुपूर्वी से प्रथम संख्यात भागवृद्धिरूप स्थानके प्राप्त होने तक उतारना चाहिए। पुनः उसके साथ उपरिम अनुभागका घात करनेपर असंख्यातभागहानिका प्रारम्भ होता है। यहाँ से लेकर पश्चादानुपूर्वीसे प्रथम संख्यातभागवृद्धिके उत्पन्न होने तक असंख्यात भागहानि के विषयरूप स्थान होते हैं। इससे नीचे घात किये जानेवाले अनुभाग के पश्चादानुपूर्वीसे उत्कृष्ट संख्यातके साधिक अर्धभागप्रमाण संख्यात भागवृद्धि के विकल्प परिहीन होने तक संख्यातभागहानिका विषय होकर जाता है। वहाँ पर प्रथम द्विगुण हीन स्थान उत्पन्न होता है । यहाँसे लेकर जघन्य परीतासंख्यातके अर्द्धच्छेदप्रमाण द्विगुणहानियाँ नीचे उतरने तक संख्यातगुणद्दानिका विषय होकर जाता है। वहाँसे लेकर पश्चादानुपूर्वीसे संख्यात भागवृद्धि के भेर्दोके असंख्यात बहुभागोंको संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धिके सब अध्वानको तथा उससे नीचे चार वृद्धियोंके अध्वानको विषय करके अन्तिम अष्टाङ्कस्थानके प्राप्त होने तक असंख्यात -
हानिका विषय होकर जाता है। यहाँ पर अन्तिम अष्टांक स्थानको छोड़कर शेष एक कम घट्स्थानप्रमाण काण्डकघात करनेवाले जीवके असंख्यातगुणहानिका अन्तिम विकल्प होता है यह उक्त कथनका भावार्थ है । पुनः अन्तिम अष्टाङ्कस्थानके साथ काण्डकघात करनेवालेके अनन्तगुणहानिका प्रारम्भ होता है । यहाँ से लेकर सबसे उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकके प्राप्त होने तक उसका घात करनेवालेके अनन्तगुणहानिका विषय होता है, क्योंकि उससे नीचे के अनुभागका अन्तिम स्थानके साथ घात नहीं उपलब्ध होता । इसी प्रकार अवस्थानसंक्रमकी सम्भावना का भी कथन करना