Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१२६.
गा०५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे पदणिक्खेवे सामित्त
ॐ सम्मत्तस्स जहरिणया हाणी कस्स ? ६४७६. सुगममेदं पुच्छासुत्तं ।
* दसणमोहणोयक्खवयस्स समयाहियावलियअक्खीणदसणमोहणीयस्स तस्स जहरिणया हाणी ।
४७७. कुदो ? तत्थाणुसमयोवट्टणावसेण सुट्ठ थोत्रीभूदाणुभागसंतकम्मादो तक्काले थोवयराणुभागसंक्रमहाणिदंसणादो।
* जहएणयमवहाणं कस्स ? ६४७८. सुगमं ।
* तस्स चेव दुचरिमे अणुभागखंडए हदे चरिमअणुभागखंडए वहमाणखवयस्स।
६४७६. तस्स चे दंसणमोहक्खायस्स दुचरिमाणुभागखंडयं घादिय तदणंतरसमयतप्पाओग्गजहण्णहाणीए परिणदस्स चरिमाणुभागखंडयविदियसमयप्पहुडि जावंतोमुहुत जहणगावट्ठाणसंक्रमो होइ, तत्थ पयारंतरासंभवादो।
* सम्मामिच्छत्तस्स जहपिणया हाणी कस्स ? ६४८०.सुगमं ।
* सम्यक्त्वकी जधन्य हानिका स्वामी कौन है । ६४७६. यह पृच्छासूत्र सुगम है ।
* दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके जब उसकी क्षपणामें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहता है तब वह सम्यक्त्वकी जघन्य हानिका स्वामी है।
६४७७. क्योंकि वहाँ पर प्रत्येक समयमें होनेवाली अपवर्तनाके कारण अत्यन्त थोड़े अनुभाग सत्कर्मसे उस समय स्तोकतर अनुभागकी संक्रम हानि देखी जाती है। ____ * इसके जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ?
६४७८. यह सूत्र सुगम है।
* जब वही क्षपक द्विचरम अनुभागकाण्डकका घात होनेके बाद चरम अनुभागकाण्डकमें अवस्थित रहता है तब वही दर्शनमोहनीयका क्षपक जीव उसके जघन्य अवस्थानका स्वामी है।
६४७६. द्विचरम अनुभागकाण्डकका घातकर अनन्तर समयमें तत्प्रायोग्य जघन्य हानिरूपसे परिणत हुए उसी दर्शनमोहनीयके क्षपक जीवके अन्तिम अनुभागकाण्डकके दूसरे समयसे लेकर अन्तमुहूर्त काल तक जघन्य अवस्थानसंक्रम होता है, क्योंकि वहाँ पर अन्य प्रकार सम्भव नहीं है ।
* सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? ६४८०. यह सूत्र सुगम है ।