Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१३६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ * दुचरिमे अणुभागखंउए हदे चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाणयस्स ।
६५००. कोहसंजलणजहण्गावट्ठाणसंकमसामित्तसुत्तस्सेव गिरवयवमेदस्स सुत्तस्सत्थपरूवणा कायया।
* इत्थिवेदस्स जहरिणया वड्डी मिच्छत्तभंगो।
६५०१. कुदो ? सुहुमहदसमुप्पत्तियकम्मेण जहण्णएणाणंतभागवड्डीए पट्टिदम्मि सामित्तपडिलंभं पडि तत्तो एदस्स भेदाभावादो ।
* जहणिया हाणी कस्स ? ६५०२. सुगमं ।
चरिमे अणुभागखंडए पढमसमयसंकामिदे तस्स जहपिणया हाणी। ६५०३. इस्थिवेदस्स दुचरिमाणुभागखंडयचरिमफालिं संकामिय चरिमाणुभागखंडयपढमसमए वट्टमाणस्स जहणिया हाणी होइ, तत्थ खरगपरिणामेहि घादिदावसेसस्स तदणुभागस्स सुट्ट जहण्णहाणीए हाइदूण संकंतिदसणादो।
तस्सेव विदियसमए जहएणयमवहाणं । ६५०४. तस्सेव चरिमाणुभागखंडयसंकमे वट्टमाणखवयस्स विदियसमये जहण्णय
* द्विचरम अनुभागकाण्डकका घात कर अन्तिम अनुभागकाण्डकमें विद्यमान जीव उसके जघन्य अवस्थानका स्वामी है।
६५००. क्रोधसंज्वलनके जघन्य अवस्थानरूप संक्रमके स्वामित्वका कथन करनेवाले सूत्रके समान ही पूरी तरहसे इस सूत्रके अर्थका कथन करना चाहिए ।
.* स्त्रीवेदकी जघन्य वृद्धिके स्वामित्वका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है।
६५०१. क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी जघन्य हतसमुत्पत्तिक कर्मसे अनन्तभागवृद्धिमें विद्यमान जीव जवन्य स्वामी है इस दृष्टिसे मिथ्यात्वकी अपेक्षा इसमें कोई भेद नहीं है।
* जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? ६५०२. यह सूत्र सुगम है। - * अन्तिम अनुभागकाण्डकका प्रथम समयमें संक्रम करके स्थित हुआ जीव जघन्य हानिका स्वामी है।
६५०३. स्त्रीवेदके द्विचरम अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालिका संक्रम करके अन्तिम अनुभागकाण्डकके प्रथम समयमें विद्यमान जीवके जघन्य हानि होती है, क्योंकि वहाँ पर आपक परिणामोंके द्वारा घात करनेसे शेष बचे हुए उसके अनुभागका अत्यन्त जघन्य हानिके द्वारा घात करके संक्रमण देखा जाता है।
* तथा वही दूसरे समयमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। ६५०४. अन्तिम अनुभागकाण्डकके संक्रममें विद्यमान उसी क्षपक जीवके दूसरे समयमें