Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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भादो १
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* जहणिया हाणी कस्स ?
६४७२. सुगमं ।
* जो वाविदो तम्मि घादिदे तस्स जहणिया हाणी । ६ ४७३. सुहुमणिगोदजहण्गाणुभागसंकमादो जो वाविदो अणुभागो सव्जीवरासपडिभागिओ तम्मि चैव विसोहिपरिणामवसेण घादिदे तस्स जहण्णिया हाणी होड़, सियाभागस्सेव तत्थ हाणिसरूवेण परिणामदंसगादो। ण चाणंतिमभागस्स खंडवादो णत्थि ति पचवयं संसारावत्थाए छविहाए हाणीए खंडयवादस्स पवुत्तिअब्भुवगमादो । तस्स च णिबंधणमेदं चेत्र सुत्तमिदि ण किंचि विष्पडिसिद्धं ।
* एगदरत्थमवद्वाणं ।
९ ४७४. कुदो ? जहण -हाणीणमण्णदरस्स से काले अबट्ठा गसिद्धीए पबाहाणुव
* एवमठ्ठकसायाणं ।
४७५. सुगममेदमप्पणासुत्तं,
पत्तदो ।
[ बंधगो ६
मिच्छत्तादो
सामित्तमेदाभाव मेदेसिमवलंबिय
* जघन्य हानिका स्वामी कौन है ?
६४७२. यह सूत्र सुगम है ।
* अनन्तवृद्धिरूप जो अनुभाग बढ़ाया गया उसका घात करने पर वह जघन्य हानिका स्वामी है ।
९४०३. सूक्ष्म निगोदके जघन्य अनुभाग संक्रमसे सब जीव राशिका भाग देकर जो अनुभाग बढ़ाया गया उसका ही विशुद्ध परिणामवश घात करने पर उसके जघन्य हानि होती है, क्योंकि जघन्य वृद्धि के विषयभावको प्राप्त हुए अनुभागका ही वहाँ पर हानिरूपसे परिणमन देखा जाता है । अनन्त भागका काण्डकघात नहीं होता ऐसा निश्चय करना ठीक नहीं, क्योंकि संसार अवस्था में छह प्रकारकी हानिरूपसे काण्डकघातकी प्रवृत्ति स्वीकार की गई है। और इस बातके ज्ञानका कारण यही सूत्र है, इसलिए कुछ भी विप्रतिपत्ति नहीं है ।
* तथा इनमें से किसी एक स्थान पर अनन्तर समयमें वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है ।
§ ४७४. क्योंकि जघन्य वृद्धि और जघन्य हानि इनमें से किसीका अनन्तर समयमें अक्स्थानरूप प्रवाह उपलब्ध होता है ।
* इसी प्रकार आठ कषायोंकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थानका स्वामी जानना चाहिए ।
६४७५. यह अर्पणासूत्र सुगम है, क्योंकि मिध्यात्व से इनके स्वामियोंमें भेद नहीं है इस तथ्यका अवलम्बन कर इस सूत्र की प्रवृत्ति हुई है ।