Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे भुजगारसंकमे एयजीवेण कालो
६३६१. सुगमं । * जहएणेण एयसमओ।
६ ३६२. दंसणमोहक्खषणाए एयमणुभागखंडयं पादिय सेसाणुभागं संकामेमाणस्स पढमसमयम्मि तदुवलंभादो।
उक्कस्सेण अंतोमुत्तं ।
६ ३६३. कुदो १ सम्मत्तस्स अट्ठवस्सविदिसंतप्प डि जाव समयाहियावलियअक्खीणदसणमोहणीयो ति ताव अणुसमयोवट्टणं कुणमाणो अंतोमुहुत्तमेत्तकालमप्पयरसंकामओ होइ, तत्थ पडिसमयमणतगुणहाणीए तदणुभागस्स हीयमाणकमेण संकंतिदंसणादो।
* अवडिवसंकामो केवचिरं कालादो होइ ? ६३६४. सुगमं।
* जहणणेण अंतोमुहत्तं ।
६३६५. दुचरिमाणुभागखंडयं धादिय तदणंतरसमए अप्पयरभावेण परिणदस्स पुणो चरिमाणुभागखंडयुक्कीरणकालो सयो चावट्ठिदसंकामयस्स जहण्णकालत्तेण गहियव्यो ।
& उकस्सेण वेछावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । ६३६६. तं जहा—एको अणादियमिच्छाइट्ठी पढमसम्मत्तमुप्पाइय विदियसमए
६३६१. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
६३६२. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाद्वारा एक अनुभागकाण्डकका पतन करके शेष अनुभागका संक्रमण करनेवाले जीवके प्रथम समयमें जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है।
* उत्कृष्ट काल अन्तमुहूत है।
६ ३६३. क्योंकि सम्यक्त्वके आठ वर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्मसे लेकर जब तक दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें एक समय अधिक एक श्रावलि काल शेष रहता है तब तक प्रत्येक समयमें अनुभागकी अपवर्तना करनेवाला जीव अन्तर्मुहूर्त काल तक अल्पतरपदका संक्रामक होता है, क्योंकि वहाँ पर प्रत्येक समयमें अनन्तगुणहानिरूपसे सम्यक्त्वके अनुभागका हीयमानक्रमसे संक्रमण देखा जाता है।
* अवस्थितसंक्रामकका कितना काल है ? ६ ३६४. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल अन्तमु हूते है ।
६३६५. क्योंकि द्विचरम अनुभागकाण्डकका घात करके तदनन्तर समयमें अल्पतरपद से परिणत होकर पुनः अन्तिम अनुभागकाण्डकका जितना उत्कीरण करनेका काल है यह सभी अवस्थितसंक्रामकका जघन्य काल है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए।
* उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है। ६ ३६६. यथा-कोई एक अनादि मिथ्यादृष्टि जीव प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न कर दूसरे