Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपअिणुभागसंकमे भुजगारसंकमस्स एयजीवेण अंतरं
* एत्तो एयजीवेण अंतरं ।
९ ३८१. सुगममेदमहियार संभालणसुत्तं ।
* मिच्छत्तस्स भुजगारसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ९ ३८२. सुगमं ।
* जहणणेण एयसमत्रो ।
§ ३८३. तं जहा—भुजगारसंकामओ एयसमयमवद्विदसंकमेणंतरिय पुणो वि विदियसमभुजगार संकामओ जादो ।
* उक्कस्सेण तेवट्ठिसागरोवमसदं सादिरेयं ।
९ ३८४. तं जहा — भुजगारसंकामओ अवट्ठिदभावसुवणमिय तिरिक्ख मणुस्सेसु अंतोमुहुत्तमेत्तकालं गभिऊण तिपलिदो मिएसुववण्णो समट्ठिदिमणुवालिय थोवावसेसे जीविदव्यत्ति उवसमसम्मत्तं घेत्तृण तदो वेदगसम्मत्तं पडिवजिय पढम-विदियछावडीओ परिभमिय तदवसाणे समयाविरोहेण मिच्छत्तमुवणमिय एक्कत्तीस सागरोवमिएसु देवेसुववण्णो तत्तो चुदो मणुत्सेसुप्पज्ञ्जिय अंतोमुहुत्तेण संकिलेसं पूरिय भुजगारसंकामओ जादो । तत्थ
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काका निर्देश किया है, क्योंकि इनका अभाव होनेके बाद पुनः इनका सत्त्व सम्भव नहीं है, इसलिए वहाँ इनका प्रवक्तब्यपद नहीं बन सकता । परन्तु अनुभागसंक्रम की दृष्टिसे इनका से वक्तव्यपद बन जाता है । तदनुसार मनुष्यत्रिकतें तो वह सम्भव है ही । यही कारण है कि यहाँ पर मनुष्यत्रिमें इनके अवक्तव्यपदका काल अलग से कहा । शेष कथन स्पष्ट ही है ।
* आगे एक जीवकी अपेक्षा अन्तरको कहते हैं ।
९ ३८१. अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र सुगम है ।
* मिथ्यात्वके भुजगारसंक्रामकका अन्तरकाल कितना है ?
९ ३८२. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तर एक समय है ।
.६३८३. यथा - भुजगारपदका संक्रम करनेवाला जीव अवस्थितपद द्वारा उसका एक समय के लिए अन्तर करके फिर भी दूसरे समयमें भुजगारपदका संक्रामक हो गया। इस प्रकार मिथ्यात्व के भुजगार संक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय उपलब्ध होता है ।
* उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक सौ त्रेसठ सागर है ।
६ ३८४. यथा - भुजगारपदका संक्रमण करनेवाला जीव अवस्थितपदको प्राप्त कर तथा तिर्यञ्चों और मनुष्यों में अन्तर्मुहूर्तकाल गमाकर तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ और अपनी स्थितिका पालनकर जीवन में थोड़ा काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्वको ग्रहणकर अनन्तर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्तकर तथा पहले और दूसरे छयासठ सागर कालतक परिभ्रमण कर उसके अन्तमें आगममें जैसी विधि बतलाई है उसके अनुसार मिथ्वात्वको प्राप्तकर इकतीस सागरकी युवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ । अनन्तर वहाँसे च्युत होकर और मनुष्यों में उत्पन्न होकर अन्तमुहूर्तके द्वारा क्लेशको पूरे तौर प्राप्त करके भुजगारपदका संक्रामक हो गया। इस प्रकार वहाँ पर यह उत्कृष्ट