Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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[ बंधगो ६
* श्रवट्ठिदसंकामया असंखेजगुणा ।
४४४. कुदो ? संकमपाओग्गतदुभयसंतकम्मियमिच्छाइट्ठि- सम्माइट्ठीणं सव्वेसिमेव
दो।
* सेसाणं कम्माणं सध्वत्थोवा श्रवत्तव्वसंकामया ।
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
§ ४४५. कुदो ! बार सकसाय-गणोकसायाणमवत्तव्त्रसंकामयभावेण संखेजाणमुवसामयजीवाणं परिणमणदंसणा दो । अनंताचंधीणं पि पलिदोत्रमा संखेन्जभागमेत्तजीवाणं तब्भावेण परिणदावलंभादो |
* अप्पयरसंकामया अतगुणा ।
९ ४४६. कुदो ? सन्यजीवाणमसंखेज्जभागपमाणत्तादो ।
* भुजगार संकोमया असंखेजगुणा ।
६ ४४७. गुणगारपमाणमेत्थ अंतोमुहुत्तमेतं संचयकालानुसारेण साहेयब्बं । * अवद्विदसंकामया संखेज्जगुणा ।
९ ४४८. कुदो भुजगारकालादो अवदिकालस्स तावदिगुणत्तोवलंभादो । raमोघो समत्तो ।
९ ४४६. आदेसेण मणुसेसु मिच्छ० सव्वत्थोवा अप्पयर संकामघा । भुजगारसंका ०
* उनसे अवस्थितसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
४४४. क्योंकि जिनके संक्रमके योग्य उक्त दोनों कर्मोंकी सत्ता है ऐसे मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि सभीका यहाँ पर ग्रहण किया है ।
* शेष कर्मों के अवक्तव्य संक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं ।
९ ४४५. क्योंकि बारह कषाय और नौ नौकषायोंके
वक्तव्यपदके संक्रमभावसे परिणत
हुए संख्यात उपशामक जीव देखे जाते हैं। तथा अनन्तानुबन्धियोंके भी वक्तव्यसंक्रमसे परिणत हुए पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव उपलब्ध होते हैं ।
* उनसे अल्पतरसंक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं ।
§ ४४६. क्योंकि ये सब जीवों के श्रसंख्यातवें भागप्रमाण हैं ।
* उनसे भुजगारसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
§ ४४७. यहाँ पर गुणाकारका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त सञ्चयकालके अनुसार साध लेना
चाहिए ।
* उनसे अवस्थितसंक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं ।
§ ४४८. क्योंकि भुजगारपदके कालसे अवस्थितपदका काल संख्यातगुणा पाया जाता है । इसप्रकार श्रोघप्ररूपणा समाप्त हुई ।
९ ४४६. देशसे मनुष्योंमें मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रामक जीब सबसे स्तोक हैं। उनसे