Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ संकामयुक्कस्सकालस्स एयसमयत्ताइप्पसंगे तण्णिवारणदुवारेण तत्थ विसेसपरूवणट्ठमुवरिमसुत्तद्दयमाह
* णवरि पुरिसवेदस्स उकसेण दोआवलियाओ समऊणाओ।
६ ३७७. कुदो ! पुरिसवेदोदयखवयस्स चरिमसमयसवेदप्पहुडि समयूणदोआवलियमेत्तकालं पुरिसवेदाणुभागस्स पडिसमयमणंतगुणहीणकमेण संकमदंसणादो।
8 चदुण्हं संजलणाणमुक्कस्सेण अंतोमहत्तं ।
हु ३७८. कुदो ? खवयसेढीए किट्टिवेदयपढमसमयप्पहुडि चदुसंजलणाणुभागस्स अणुसमयोवट्टणाधादर्दसणादो।
* अवडिदं जहपणेण एयसमो । * उकस्सेण तेवहिसावरोवमसदं सादिरेयं । ६ ३७६. एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि ।
ॐ अवत्तव्वं जहणणुकतेणं एयसमो ।
६३८०. सुगमं । एवमोघो समतो। आदेसेण मणुसतिए विहत्तिभंगो। णवरि बारसक०-णवणोक० अवत्तबमोघं । सेसमग्गणासु' विहत्तिभंगो। संज्वलनोंके भी अल्पतरसंक्रामकका उत्कृष्ट काल एक समय प्राप्त होने पर उसके निवारण द्वारा उस विषयमें विशेष कथन करने के लिए आगेके दो सूत्र कहते हैं
* इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदका उत्कृष्ट काल एक समय कम दो आवलि है।
६३७७ क्योंकि पुरुषवेदके उदयसे क्षपकनेणिपर चढ़े हुए जीवके सवेदभागके अन्तिम समयसे लेकर एक समय कम दो आवलिप्रमाण काल तक पुरुषवेदके अनुभागका प्रत्येक समयमें अनन्तगुणी हानिरूपसे संक्रम देखा जाता है।
* चार संज्वलनोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।।
६३७८. क्योंकि क्षपकश्रेणिमें कृष्टिवेदकके प्रथम समयसे लेकर चार संज्वलनोंके अनुभागका प्रत्येक समयमें अपवर्तनाघात देखा जाता है।
* अवस्थितसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है। * उत्कृष्ट काल साधिक एक सौ त्रेसठ सागर है। ६३७६ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। * अवक्तव्यसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
६३८०. यह सूत्र सुगम है । इस प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। आदेशसे मनुष्यत्रिकमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके अवक्तव्यसंक्रामकका भङ्ग ओघके समान है। शेष मार्गणाओंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है ।
विशेषार्थ-अनुभागविमक्तिमें न तो ओघसे बारह कषाय और नौ नोकषायोंका अवक्तव्य पदकी अपेक्षा कालका निर्देश किया है और न मनुष्यत्रिकमें ही इनके अवक्तव्यपदके
१. श्रा०प्रतौ सेससव्वममाणासु इति पाठः ।