Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे भुजगारसंकमे एयजीवेण कालो १०१
६३५४. कुदो ! हेडिमाणुभागसंकमादो बंधवुड्डिवसेणेय समयं भुजगारसंकामओ होदूण विदियसमए अवट्ठिदसंकमेण परिणदम्मि तदुवलंभादो ।
ॐ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
६ ३५५. एदमणुभागट्ठाणं बंधमाणो तत्तो अणंतगुणवड्डीए वड्डिदो पुणो विदियसमए वि तत्तो अणंतगणवड्डीए परिणदो । एवमणतंगणवड्डीए ताव बंधपरिणामं गदो जाव अंतोमुहुत्तचरिमसमयो ति। एवमंतोमुहुत्तभुजगारबंधसंभवादो भुजगारसंकमुक्कस्सकालो वि अंतोमुहुत्तपमाणो ति णत्थि संदेहो, बंधाबलियादोदक्कमेणेव संकमपन्जायपरिणामदंसणादो ।
8 अप्पयरसंकामो केवचिरं कालादो होइ ? ६३५६. सुगमं ।
* जहणणुक्कस्सेण एयसमो ।
६ ३५७. तं जहा-अणुभागखंडयघादवसेणेयसमयमप्परयसंकामओ जादो विदियसमयअवविदपरिणाममुवगओ, लद्धो जहण्णकस्सेणेयसमयमेत्तो अप्पयरकालो ।
* अवहिदसंकामो केवचिरं कालादो होइ ? ६ ३५८. सुगमं।
ॐ जहपणेण एयसमओ।
६३५४. क्योंकि जो जीव अधस्तन अनुभागसंक्रमसे बन्धकी अनुभागवृद्धि वश एक समय तक भुजगारपदका संक्रामक होकर दूसरे समयमें अवस्थितसंक्रमरूप परिणत हो जाता है उसके मिथ्यात्वके भुजगारसंक्रमका जघन्य काल एक समय उपलब्ध होता है ।
* उत्कृष्ट काल अन्तमु हूते है।
६ ३५५. विवक्षित अनुभागस्थानका बन्ध करनेवाला जीव उससे अनन्तगुणी वृद्धिरूपसे वृद्धिको प्राप्त होकर पुनः दूसरे समयमें भी अनन्तगुणी वृद्धिरूपसे परिणत हुआ। इस प्रकार अनन्तगुणी वृद्धिरूपसे तब तक बन्धपरिणामको प्राप्त हुआ जब जाकर अन्तर्मुहूर्तका अन्तिम समय प्राप्त होता है। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल तक भुजगारबन्ध सम्भव होनेसे भुजगारसंक्रमका भी उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है इसमें सन्देह नहीं, क्योंकि बन्धावलिके व्यतीत होनेके बाद ही क्रमसे संक्रमपर्यायरूप परिणाम देखा जाता है।
* अल्पतर संक्रामकका कितना काल है ? ६ ३५६. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
६३५७. यथा-कोई जीव अनुभागकाण्डकघात वश एक समयके लिए अल्पतर पदक। संक्रामक हुआ और दूसरे समयमें अवस्थित परिणामको प्राप्त हुआ। इस प्रकार मिथ्यात्वके अल्पतरपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय प्राप्त हुआ।
* अधस्थितसंक्रामकका कितना काल है ? ६३५८. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है।
PRAKAR