Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
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० यसमओ । अट्ठणोक० सम्मामि० जह० जहण्णु० अंतोमु० । तेसिं चेव अज० जह० एस ०, उक्क० सगट्ठिदी । अणुद्दिसादि सट्टा ति विहत्तिभंगो । एवं जाव० ।
* एत्तो एयजीवेण अंतरं ।
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अपनी कायस्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्व, आठ कषाय और पुरुषवेदके जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा आठ नोकषाय और सम्यग्मिथ्यात्त्रके जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है और सम्यक्त्व आदि उन्हीं सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में अनुभाग विभक्ति के समान भङ्ग है । इसी प्रकार अनाहारकमार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ —यहाँ पर मनुष्यत्रिकमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागसंक्रमके कालका से निर्देश किया है । खुलासा इस प्रकार है - यह सम्भव है कि कोई जीव सूक्ष्म एकेन्द्रियके हतसमुत्पत्तिक अनुभाग के साथ मनुष्यत्रिकमें कमसे कम एक समय तक और अधिक अधिक अन्तर्मुहूर्त तक रहे, इसलिए तो इनमें मिध्यात्व और मध्यकी आठ कषायोंके जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। तथा इनमें मिथ्यात्वके अजघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त इनकी जघन्य आयुकी अपेक्षा ठ कषायका जघन्य काल एक समय उपशमन शिकी अपेक्षा और सबका उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण कायस्थितिकी अपेक्षा कहा है । सम्यक्त्व तथा चार अनन्तानुबन्धी और चार संज्वलन के जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय इस लिए कहा है, क्योंकि इनका जघन्य अनुभाग संक्रम एक समयके लिए ही प्राप्त होता है जो स्वामित्वको देख कर जान लेना चाहिए | तथा सम्यक्त्वके अजधन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा, अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अजघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय अपने स्वामित्वके अनुसार इनमें एक समय तक रखनेकी अपेक्षा तथा चार संज्वलनके अजघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय उपशमश्र णिकी अपेक्षा कहा है। इनके अजघन्य अनुभागसंक्रमका उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी उत्कृष्ट कार्यस्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । सम्यग्मिथ्यात्व और आठ नोकषायके जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त इसलिए कहा है, क्योंकि वह अपने - अपने अन्तिम काण्डकके पतन के समय होता है जो स्वामित्वको देख कर जान लेना चाहिए। तथा सम्यग्मिथ्वात्वके जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय उनकी अपेक्षा और आठ नोकषायोंके जघन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय उपशमश्र णिकी अपेक्षा कहा है। इनके अजघन्य अनुभागसंक्रमका उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी कार्यास्थतिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । यहाँ पर जहाँ उद्वेलनाकी अपेक्षा एक समय काल कहा है। सो उसका यह भाव है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के उद्वेलनासंक्रम में एक समय शेष रहने पर. मनुष्यत्रिक उत्पन्न करावे और इनके अजवन्य अनुभागसंक्रमका जघन्य काल एक समय
वे । इसी प्रकार जहाँ पर उपशमश्र णिकी अपेक्षा एक समय काल कहा है सो इसका यह अभिप्राय है कि उपशमश्र णिमें उतरते समय यथा स्थान उस प्रकृतिका एक समय तक अजघन्य अनुभागसंक्रम करावे और दूसरे समय में मरण कराकर देवगतिमें ले जावे। शेष कथन अनुभागविभक्तको देख कर घटित कर लेना चाहिए ।
* आगे एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका कथन करते हैं ।