Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८]
उत्तरपयडिअणुभागसंकमे सण्णियासो * एवमहकसाया।
६ १६६. जहा मिच्छत्तस्स जहण्णसण्णियासो कओ एवमढकसायाणं पि पादेकणिरुंभणाए काययो, विसेसाभावादो ति भणिदं होदि ।
ॐ सम्मत्तस्स जहणणाणु भागं संकानेंतो मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्तभणंताणु बंधीणमकम्मंसियो।
२००. कुदो ? एदेसिमविणासे सम्मत्तजहण्णाणुभागसंकमुप्पत्तीए विप्पडिसिद्धत्तादो।
सेसाण कम्माण णियमा अजहरण संकादि। ६२०१. कुदो ? सुहुमहदसमुप्पत्तियकम्मेण चरित्तमोहक्खवणाए च लद्धजहण्णमावाणं तेसिमेत्य जहण्णभावाणुवलंभादो।
® जहण्णादो अजहण्णमणतगुणन्भहियं ।
( २०२. कुदो ? अट्ठकसायाणं हदसमुप्पत्तियजहण्णाणुभागादो सेसकसायणोकसायाणं पि खवणाए जणिदजहण्गाणुभागसंकमादो एत्थतणतदणुभागसंकमस्स तहाभावसिद्धीए विप्पडिसेहामावादो।
* इसी प्रकार मध्यकी आठ कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
६ १६६. जिस प्रकार मिथ्यात्वकी मुख्यतासे जघन्य सन्निकर्षका विधान किया है उसी प्रकार पाठ कगयोंकी अपेक्षा भी प्रत्येककी मुख्यतासे जघन्य सन्निकर्षका कथन करना चाहिए, क्योंकि मिथ्यात्वके कथनसे इनके कथनमें कोई विशेषता नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
___ * सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके सत्कर्मसे रहित होता है।
.. ६२००. क्योंकि इन मिथ्यात्व आदिका विनाश हुए बिना सम्यक्त्त्वके जघन्य अनुभाग संक्रमकी उत्पत्ति निषिद्ध है।
* शेष कमों के नियमसे अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है।
६२०१. क्योंकि जिनमें सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बधी हतसमुत्पत्तिक कर्मके द्वारा और चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके द्वारा जघन्यता प्राप्त हुई है उनका यहाँ अर्थात् सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागसंक्रमके साथ जघन्यपना नहीं बन सकता।
* जो अपने जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है।
६२०२. क्योंकि आठ कषायोंके हतसमुत्पत्तिक रूपसे उत्पन्न हुए जघन्य अनुभागसे तथा शेष कषाय और नोकषायोंके भी क्षपणामें उत्पन्न हुए जघन्य अनुभागसंक्रमसे यहाँ पर उत्पन्न हुए
उनके जवन्य अनुभागसंक्रमका जघन्यपना निषिद्ध है।