Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा०५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे णाणाजीवेहि कालो
७ ६२३६. दसणमोहक्खवणादो अण्णत्थ तदणुवलंभादो। एवमोघो समत्तो। आदेसेण सम्बत्थ विहतिभंगो।
* एत्तो जहएणकालो। २३७. सुगमं ।
मिच्छत्त-अट्ठकसायाणं जहएणाणभागसंकामया केवचिरं कालादो होति?
६२३८. सुगमं । * सव्वडा।
२३६. कुदो ? सुहुमेइदियजीवाणं हदसमुप्पत्तियजहणणसंतकम्मपरिणदाणं तिसु वि कालेसु बोच्छेदाणुवलंभादो।
® सम्मत्त-चदुसंजलण-पुरिसवेदाणं जहरणाणुभागसंकामया केवचिरं कालादो होति ?
६२४०. सुगमं।
ॐ जहणणेणेयसमत्रो। ६ २४१. कुदो १ सम्मत्तस्स समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीयम्मि लोम
६ २३६. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके सिवा अन्यत्र यह काल नहीं पाया जाता । इस प्रकार ओघनरूपणा समाप्त हुई । आदेशसे सर्वत्र अनुभाग विभक्तिके समान भङ्ग है ।
* अब जघन्य कालको कहते हैं । ६ २३७. यह सूत्र सुगम है।
* मिथ्यात्व और आठ कपायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामक जीवोंका कितना काल है ? . ६ २३८. यह सूत्र सुगम है।
* सब काल है।
६०३६. क्योंकि हतसमुत्पत्तिकरूप जवन्य सत्कर्मसे परिणत हुए सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंका तीनों ही कालोंमें विच्छेद नहीं पाया जाता ।
___ * सम्यक्त्व, चार संज्वलन और पुरुषवेदके जघन्य अनुभागके संक्रामक जीवोंका कितना काल है ?
६ २४०. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य काल एक समय है।
६२४१. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें एक समय अधिक एक आवलि काल रहने पर एक समयके लिए सम्यक्त्वका, सकषाय अवस्थामें एक समय अधिक एक श्रावलिकाल शेष रहने पर