Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ ६ २८१. कुदो ? बादरकिट्टिसरूवेण पुयमेवाणियट्टिपरिणाभेहि लद्धजहण्णभावत्तादो।
माणसंजलणस्स जहणणाणुभागसंकमो अणंतगुणो।
२८२. कुदो ? जहण्गसामित्तविसयीकयमायासंजलणचरिमणवकबंधादो जहाकममणंतगुणसरूवेणावट्ठिदमायातदिय-विदिय-पढमसंगहकिट्टीहितो वि माणसंजलणणवक्रबंधसरूवस्सेदस्साणंतगुणत्तदंसणादो।
* कोहसंजलणस्स जहएणाणुभागसंकमो अणंतगुणो।।
हु २८३. कुदो ? पुचिल्लसामित्तविसयादो हेट्ठा अंतोमुहत्तमोयरिय कोहवेदयचरिमसमयणकवंधचरिमसमयसंकामयम्मि जहण्णभावमुवगयत्तादो।
* सम्मत्तस्स जहएणाणुभागसंकमो अणंतगुणो।
२८४. कुदो ? किट्टिसरूवकोहसंजलणजहण्णाणुभागसंकमादो फद्दयगयसम्मत्तजहण्णाणुभागसंकमस्साणतगुणब्भहियत्ते विसंवादाणुवलभादो।।
पुरिसवेदस्स जहणणाणुभागसंकमो अणंतगुणो। ६ २८५. किं कारणं ? सम्मत्तस्स अणुसमयोवट्टणकालादो पुरिसवेदणवकबंधाणुसमयोवट्टणाकालस्स थोवत्तदंसणादो।
* सम्मामिच्छत्तस्स जहएणाणुभागसंकमो अणंतगुणो ।
६२८१. क्योंकि बादर कृष्टिरूप होनेसे इसने पहले ही अनिवृत्तिरूप परिणामोंके द्वारा जघन्यपना प्राप्त कर लिया है।
* उससे मानसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
६२८२. क्योंकि जघन्य स्वामित्वको विषय करनेवाले मायासंज्वलन सम्बन्धी अन्तिम नवकबन्धसे तथा यथाक्रम अनन्तगुणरूपसे स्थित हुई मायाकी तीसरी, दूसरी और पहिली संग्रह कृष्टियोंसे भी मानसंज्वलनके नवकबन्धरूप यह जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा देखा जाता है।
* उससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।
६२८३. क्योंकि मानसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम जहाँ प्राप्त होता है उस स्थानसे पीछे अन्तर्मुहूर्त जा कर क्रोधवेदकके अन्तिम समयमें हुए नवकबन्धका अन्तिम समयमें संक्रमण करनेवाले जीवके क्रोधसंज्वलनके अनुभागसंक्रमका जघन्यपना प्राप्त होता है।
* उससे सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।
६२८. क्योंकि कृष्टिरूप क्रोधसंज्वलनके जघन्य अनुभागसंक्रमसे स्पर्धकरूप सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा अधिक होता है इसमें कोई विसंवाद नहीं उपलब्ध होता।
* उससे पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
६ २८५. क्योंकि सम्यक्त्वके प्रतिसमय होनेवाले अपवर्तनासम्बन्धी कालसे पुरुषवेदके नवकबन्धका प्रतिसमय होनेवाला अपवर्तनासम्बन्धी काल स्तोक देखा जाता है।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।