Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवला सहिदे कसा पाहुडे
* मायाए जहणाणभागसंकमो विसेसाहिओ । * लोभस्स जहण्णाण भागसंकमो विसेसाहिओ । ३०२. प्राणिति वित्ताणि सुगमाणि ।
* मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकमो अंतगुणो । ६३०३. सयल पदत्यविसय सहहण परिणामपडिबंधित्तेण लद्धमाहप्पस्सेदस्स तहाभावविरोहाभावादो ।
$ ३०४. एवमोघेण जहण्णप्पा बहुअं परूविय एत्तो आदेसपरूवणमुत्तरं सुत्तपबंधमाह - * रियगईए सव्वत्थोवो सम्मत्तस्स जहणाणुभाग संकमो । ६ ३०५. कुदो देसघादिएयट्ठाणियसरूवत्तादो |
८५
[ बंधगो ६
* सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाण भागसंकमो अतगुणो । ९ ३०६. कुदो ? सव्त्रघादिविदु। णियसरूवत्तादो ।
*
ताण बंधिमाणस्स जहणणाणु भागसंकमो अतगुणो । ६ ३०७. कुदो ? सम्मामिच्छत्तुकस्सारणुभागादो अर्णतगुणभावेणावडिदमिच्छतजहण्णफद्दय पहुड उवरि वि लगाणुभागविण्णास स्सेदस्स तत्तो अनंतगुणत्तसिद्धीए पधाभावादो ।
* कोहस्स जहणाणु भागसंकमो विसेसाहिओ ।
* उससे प्रत्याख्यान मायाका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है
* उससे प्रत्याख्यान लोभका जधन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है । ६ ३०२ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं ।
* उससे मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
६ ३०३. क्योंकि सकल पदार्थविषयक श्रद्धानरूप परिणामोंका रोकनेवाला होनेसे महत्त्वको प्राप्त हुए इसके अनन्तगुणे होने में कोई विरोध नहीं आता ।
३०४. इस प्रकार से जवन्य अल्पबहुत्वका कथन करके आगे श्रदेशका कथन करने के लिए आगेकी सूत्रपरिपाटीका कथन करते हैं
* नरकगतिमें सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसंक्रम सबसे स्तोक है ।
९ ३०५. क्योंकि यह देशघाति एक स्थानिकस्वरूप है ।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
९ ३०६. क्योंकि यह सर्वघाति द्विस्थानिकस्वरूप है ।
* उससे अनन्तानुबन्धी मानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
९ ३०७. क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसे अनन्तगुणरूपसे अवस्थित मिध्यात्वके जघन्य स्पर्धकसे लेकर उससे भी ऊपर अवस्थित हुए इस अनुमागके सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभाग संक्रमसे अनन्तगुणे सिद्ध होने में कोई रुकावट नहीं है ।
* उससे अनन्तानुबन्धीको का जधन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है ।