Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयढिअणुभागसंकमे अप्पा बहु
६ २६८. किं कारणं १ कारिसग्गिसमाणो इत्थिवेदाणुभागो | णवुंसयवेदा णुभागो पुट्ठावागग्गिसमाणो णाणंतगुणो जादो ।
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* अपच्चक्खाणमाणस्स जहण्णाणुभागसंकमो अतगुणो ।
$ २६६. कुदो ! सुहुमेइ दियहदसमुप्पत्तियकम्मेण लद्धजहण्णाणुभागस्सेदस्स अंतरकरणे कदे खवगपरिणामेहि घादिदावसेसणवंसयवेदजहण्णा रणुभागसंकमादो अनंतगुणत्तसिद्धी
इयत्तादो |
* कोहस्स जहणणाणुभागसंकमो विसेसाहियो ।
* मायाएं जहण्णाणुभागसंकमो विसेसाहिओ ।
* लोभस्स जहएणाणुभागसंकमो विसेसाहियो ।
९ ३००. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि ।
* पच्चक्खाणमाणस्स जहण्णाणुभागसंकमो अंतगुणो । ९३०१. कुदो १ सयलसंजम घादित्तण्णहाणुववत्तीदो । देससंजमघादि अपच्चक्त्राणलोभ भागादो अनंतगुणत्ताभावे तत्तो अनंतगुणसयलसंजम घादित्तमेदस्स जुजदे, विप्पडिसेहादो |
* कोहस्स जहण्णाणुभागसंकमो विसेसाहि ।
९ २६८. क्योंकि स्त्रीवेदका अनुभाग कारीषकी अग्निके समान है । परन्तु नपुंसकवेदका अनुभाग वाकी अग्नि के समान है, इसलिए यह अनन्तगुणा है ।
* उससे अप्रत्याख्यान मानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
९ २६६. क्योंकि इसका जघन्य अनुभाग सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी हतसमुत्पत्तिक कर्मरूपसे प्राप्त होता है और नपुंसक वेदका जघन्य अनुभागसंक्रम अन्तरकरण करनेके बाद घात करनेसे जो शेष बचता है तत्प्रमाण होता है, इसलिए नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागसंक्रमसे अप्रत्याख्यानमानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा सिद्ध होता है यह न्याय प्त है ।
* उससे अप्रत्याख्यान क्रोधका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अप्रत्याख्यान मायाका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे अप्रत्याख्यान लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम बिशेष अधिक है । ९३००. ये तीनों सूत्र सुगम हैं ।
* उससे प्रत्याख्यानमानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
३०१. क्योंकि अन्यथा यह सकलसंयमका घातक नहीं हो सकता । और देशसंयम का घात करनेवाले अप्रत्याख्यान लोभके जघन्य अनुभाग से इसे अनन्तगुणा नहीं माना जाता है तो देश संयमसे अनन्तगुणे सकलसंयमका घात इसके द्वारा नहीं बन सकता, क्योंकि ऐसा मानना निषिद्ध है।
* उससे प्रत्याख्यान क्रोधका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है ।