Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासद्दिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
६ २७२. जहण्णपरिणामेणादिं काद्णासंखेजलोगमेत्तेहिं अजहण्णपाओग्गपरिणामेहिं चैव संजोजयंताणं णाणाजीवाणमेदमुकस्संतरं लब्भदि ति वृत्तं होइ । संपहि सव्वेसि - मजहण्णाणुभागसंकामयाणमंतरविहाणमुत्तरमुत्तारंभो
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* एदेसिं सव्वेसिमजहरणाणुभागस्स केवचिरमंतरं ? ९ २७३. सुगमं ।
* णत्थि अंतरं ।
९ २७४. सव्वेसिमजहण्णाणुभागसंकामयाणमंतरेण विणा सव्त्रद्धमवद्वाणदंसणादो । raमोघ समत्तो ।
$ २७५. आदेसेण सव्वणेरइय- सव्यतिरिक्ख- मणुस अपज ० - सव्वदेवा त्ति विहत्तिभंगो । मसतिए ओघं । वरि मिच्छ० अट्ठक० जह० जह० एयसमओ, उक्क० असंखेजा लोगा । मसिणी खगपयडीणं वासपुधत्तं । एवं जाव० ।
९ २७२. जघन्य परिणाम से प्रारम्भ करके असंख्यात लोकमात्र अजघन्य अनुभागसंक्रमके योग्य परिणामोंसे ही संयोजना करनेवाले नाना जीवोंके यह उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब उक्त सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभाग के संक्रामकोंके अन्तरका विधान करनेके लिए आगे के सूत्रका आरम्भ करते हैं
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* इन सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागके संक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? ६ २७३. यह सूत्र सुगम है ।
* अन्तरकाल नहीं है ।
९ २७४. क्योंकि उक्त सब प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका अन्तर कालके बिना सदाकाल अवस्थान देखा जाता है ।
इस प्रकार श्रघप्ररूपणा समाप्त हुई
§ २७५. आदेशसे सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । मनुष्यत्रिक में प्रोघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । मनुष्यिनियोंमें क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ – मनुष्यत्रिमें अन्य सब अन्तरकाल श्रोघ के समान बन जाता है । मात्र मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकों के अन्तरकालमें कुछ विशेषता है । बात यह है कि से इन प्रकृतियोंके जघन्य अनुभाग के संक्रामकोंका अन्तरकाल नहीं प्राप्त होता, क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रियों में इन प्रकृतियोंका जघन्य अनुभागसंक्रम करनेवाले जीव सर्वदा बने रहते हैं । परन्तु मनुष्यत्रिककी स्थिति नारकी श्रादिके समान है, इसलिए इस विशेषताका निर्देश करने के लिए यहाँ पर उसका अलगसे उल्लेख किया है । तथा मनुष्यिती अधिकसे अधिक वर्षपृथक्त्व प्रमाण काल तक क्षपक णि पर आरोहण न करें यह सम्भव है, इसलिए इममें क्षपक प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्वप्रमाण कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है ।