Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ६२६३. सुगमं।
मिच्छत्तस्स अट्ठकसायस्स जहणाणुभागसंकामयाणं केवचिरं अंतरं ?
६२६४. सुगमं।
* त्यि अंतरं।
६२६५. कुदो ? पयदजहण्गाणुभागसंकामयाणं सुहुमाणं णिरंतरसरूवेण सबकालमवहिदत्तादो।
* सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-चदुसंजलण-णवणोकसायाणं जहण्णाणु. भागसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
६२६६. सुगमं।
ॐ जहरणेणेयसमप्रो। * उक्कस्सेण छम्मासा।
६ २६७. एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । संपहि एत्थतणविसेसपदुप्पायणदुमुत्तरसुत्तमाह
* णवरि तिषिणसंजलण-पुरिसवेदाणमुक्कस्सेण वासं सादिरेयं । ६ २६८. तं जहा–कोहसंजलणस्स उक्कस्संतरे विवक्खिए सोदएणादि कादूण ६ २६३. यह सूत्र सुगम है।
* मिथ्यात्व और आठ कपायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ?
६ २६४. यह सूत्र सुगम है।
* अन्तरकाल नहीं है।
६२६५. क्योंकि प्रकृत जघन्य अनुभागके संक्रामक सूक्ष्म जीव अन्तरके बिना सदा काल अवस्थित रहते हैं।
* सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, चार संज्वलन और नौ नोकषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ?
६२६६. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है।
६ २६७. ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। अब यहां सम्बन्धी विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं.....
* इतनी विशेषता है कि तीन संज्जलन और पुरुषवेदका उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है।
६२६८. यथा-क्रोधसंजलनका उत्कृष्ट अन्तर विवक्षित होने पर स्वोदयसे अन्तरका प्रारम्भ