Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिअणुभागसंकमे अप्पा बहु
§ २७६. भावो सव्त्रत्थ ओदइओ भावो ।
* अप्पाबहुअं ।
§ २७७. सुगममेदमहियारसंभालणसुतं । तं च दुविहमप्पाबहुअं जहण्णुकस्साणुभागसंकमविसयभेदेण । तत्थुक्कस्सारणुभागसंकमप्पाबहुअमुकस्सा णुभागविहत्तिभंगादो ण जिदि ति तेण तदप्पणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
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* जहा उकस्साणुभागविहन्ती तहा उकस्साणुभागसंकमो ।
६ २७८. जहा उकस्साणुभागविहत्ती अप्पाबहुअविसिट्ठा परूविदा तहा उकस्साणुभागसंकमो वि परूवेयत्रो, विसेसाभावादो त्ति भणिदं होदि ।
* एतो जहण्णयं ।
९ २७६. एत्तो उकस्साणुभागसंकम प्याबहुअविहासणादो उवरि जहण्णयमप्पा बहुअं सामो ति पावकमेदं । तस्स दुविहो णिद्देसो ओघादेस मेएण । तत्थोघणिसो ताब कीरदे । तं जहा
* सव्वत्थोवो लोहसंजलणस्स जहण्णाणुभागसंकमो ।
६ २८०. कुदो १ हुमकिट्टिसरूवत्तादो ।
* मायासंजलणस्स जहण्णाणुभागसंकमो अांतगुणो ।
९ २७६. भाव सर्वत्र औदायिक भाव है।
* अब अल्पबहुत्वको कहते हैं ।
§ २७७. अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र सुगम है । जघन्य और उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमरूप विषयके भेदसे वह अल्पबहुत्व दो प्रकारका है। उसमें उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमविषयक अल्पबहुत्व उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिविषयक अल्पबहुत्वसे भिन्न प्रकारका नहीं है, इसलिए उसके साथ इसकी मुख्यता करते हुए श्रागेका सूत्र कहते हैं—
* जिस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिविषयक अल्पबहुत्व है उसी प्रकार उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमविषयक अल्पबहुत्व जानना चाहिए ।
§ २७८. जिस प्रकार अल्पबहुत्वविशिष्ट उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका कथन किया है उसी प्रकार उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिए, क्योंकि दोनोंमें कोई अलग अलग विशेषता नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* आगे जघन्य अल्पबहुत्वको कहते हैं ।
$ २७९. 'एतो' अर्थात् उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमविषयक अल्पबहुत्वका व्याख्यान करनेके बाद जघन्य अल्पबहुत्वको बतलाते हैं इस प्रकार यह प्रतिज्ञावाक्य है । उसका निर्देश दो प्रकारका है - भोष और आदेश । उनमेंसे सर्वप्रथम श्रोघका निर्देश करते हैं
* लोभसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम सबसे स्तोक है । 8 २८०. क्योंकि वह सूक्ष्म कृष्टिरूप है ।
* उससे मायासंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।