Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ संजलणस्स समयाहियावलियसकसायम्मि सेसाणं अप्पप्पणो णवकबंधचरिमफालिसंकमणावत्थाए लद्धजहण्णभावाणमेयसमयोवलद्धीए बाहाणुवलंभादो।
उकस्सेण संखेजा समया। ६२४२. कुदो ? संखेजवारमणुसंधाणवसेण तदुवलंभादो ।
सम्मामिच्छत्त-अट्ठणोकसायाणं जहपणाणुभागसंकामया केवचिरं कालादो होति ?
६२४३. सुगमं एदं।
ॐ जहणणुकस्सेण अंतोमहत्तं ।
६२४४. जहण्णेण ताव तेसिमप्पप्पणो चरिमाणुभागखंडयकालो घेत्तव्यो । उक्कस्सेण सो चेव छायादिद्रुतेण लद्धाणुसंधाणो घेत्तव्यो ।
* अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसंकामया केवचिरं कालादो होति ? ६ २४५. सुगमं । * जहणणेण एयसमश्रो।
हु २४६. कुदो ? विसंजोयणापुत्रसंजोगपढमसमए जहण्णपरिणामेण बद्धजहण्णाणुभागमावलियादीदमेयसमयं संकामिय विदियसमए अजहण्णभावपरिणदणाणाजीघेसु तदुवलंभादो।
एक समयके लिए संज्वलनलोभका तथा अपने-अपने नवकबन्धकी अन्तिम फालिकी संक्रमण अवस्थामें शेष प्रकृतियोंका जघन्य अनुभागसंक्रम पाया जाता है, इसलिए जघन्य काल एक समय प्राप्त होने में बाधा नहीं आती।
* उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ६ २४२. क्योंकि संख्यातबार किये गये अनुसन्धानवश उक्त काल प्राप्त हो जाता है ।
* सम्यग्मिथ्यात्व और आठ नोकषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकोंका कितना काल है ?
६२४३. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है ।
६ २४४. जघन्यसे तो उनका अपने अपने अन्तिम अनुभागकाण्डकका काल लेना चाहिए। तथा उत्कृष्टसे वही काल छायाके दृष्टान्त द्वारा अनुसन्धान करते हुए ग्रहण करना चाहिए ।
* अनन्तानुबन्धियोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकोंका कितना काल है ? ६ २४५. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य काल एक समय है।
६२४६. क्योंकि विसंयोजनापूर्वक संयोजना होनेके प्रथम समयमें जघन्य परिणामसे बन्धको प्राप्त हुए जघन्य अनुभागको एक आवलिके बाद एक समय तक संक्रमा कर दूसरे समयमें जो जीव अजघन्य अनुभागके संक्रमरूपसे परिणत हो जाते हैं उनके जघन्य काल एक समय उपलब्ध होता है।