Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिप्रणुभागसंकमे सण्णियासो
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सेत्थि । एवं मणुस ० ३ । णवरि मणुसिणी० णवंस० जह० अणुभागसंका ० इत्थवे ० णिय० अज० अनंतगुणभ० । इत्थिवेद ० जह० for । पुरिसंवेद० गोकसायभंगो ।
अणुभा० संका ० स ०
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२११. आदेसेण रइय० मिच्छ० जह० अणुभाग संका ० विहत्तिभंगो | णवरि सम्म० सिया अस्थि । जदि अत्थि सिया संका ० | जड़ संका ० णिय० अज० अनंतगुणन्भ ० | एवं बारसक० - णत्रणोक० । सभ्म० - अनंताणु०४ विहत्तिभंगो । एवं पढमाए तिरिक्ख० पंचि०तिरिक्ख ०२ - देवगादिदेवा । एवं चेत्र जोणिणी भवण ० त्राणत्रेतर० । णत्ररि सम्म० णत्थि । २१२. विदयादि सत्तमा त्ति मिच्छ० जह० अणु० संका • अनंतापु०४ सिया अस्थि । जदि अस्थि सिया संका० । जड़ संका ० जह० अजहण्णं वा, जहण्णादो अजहण्णं छापदिदं । बारसक० - णवणोक० णिय० जह० । एवं बारसक० -णवणोक० । अनंताणु०४ विहत्तिभंगो । एवं जोदिसि० । पंचि०तिरिक्खअपज ० - मणुस अपज० विहत्तिभंगो । सोहम्मादि जाव सात्ति विहत्तिभंगो । वरि अपञ्चकखाणकोह० जह० अणु ० संका ० प्रकार सन्निकर्ष के समान मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियोंमें नपुंसकवेद के जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव नियमसे स्त्रीवेद के अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका संक्रामक होत । है । स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव नपुंसकवेदके सत्कर्मसे रहित है । पुरुषवेदका भङ्ग छह नोकषायोंके समान है ।
२११. देशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके संक्रामक जीवका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वप्रकृति कदाचित् है । यदि है तो उसका कदाचित् संक्रामक होता है । यदि संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । इसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायों के जघन्य अनुभागसंक्रमको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककेजघन्य अनुभाग के संक्रामककी मुख्यतासे भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है। इसी प्रकार पहली पृथिवी, सामान्य तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चद्विक और देवगतिमें सामान्य देवोंमें जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार योनिनीतिर्यञ्च भवनवासी और व्यन्तरदेवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है। कि इनमें सम्यक्त्वका भंग नहीं है ।
९ २१२. दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें मिध्यात्वके जघन्य अ भागके संक्रामक जीवके अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं । यदि हैं तो कदाचित् संक्रामक होता है । यदि संक्रामक होता है तो जघन्य अनुभागका भी संक्रामक होता है और अजघन्य अनुभागका भी संक्रामक होता है । यदि अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतितत अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । बारह कषाय और नौ नोकषायोंके नियमसे जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । इसी प्रकार बारह कषाय और नौ नोकषायों के जघन्य अनुभागसंक्रमको मुख्य कर सन्निकर्ष कहना चाहिए । अनन्तनुबम्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागसंक्रमको मुख्यकर भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है । इसी प्रकार ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । सौधर्म कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता
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