Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ २१६. सुगममेदमप्पणासुत्तं । एदेण सामण्णणिदेसेण सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पि मिच्छत्तभंगाइप्पसंगे तत्थतणविसेसपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं
* णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं संकामगा पुव्वं ति भाणिदव्वं ।
६२२०. तं जहा–सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुभागस्स सिया सव्वे जीवा संकामया १, सिया एदे च असंकामओ च २, सिया एदे च असंकामया च ३। एवमणुकस्साणुभागसंकामयाणं पि विवजासेण तिण्हं भंगाणमालावो कायव्यो ति एस विसेसो सुत्तेणेदेण जाणाविदो।
एवमोघेणुक्कस्सभंगविचओ समत्तो । ६ २२१. आदेसेण सव्वमग्गणासु विहत्तिभंगो ।
जहएणाणुभागसंकमभंगविचो। ६२२२. सुगमं ।
ॐ मिच्छत्त-अट्ठकसायाणं जहएणाणभागस्स संकामया च असंकामया च।
६२१६. यह अर्पणासूत्र सुगम है । इस सामान्य निर्देशसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें भी मिथ्यात्वके भङ्गोंका अतिप्रसङ्ग प्राप्त होने पर उनमें विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव पहले कहने चाहिए।
६२२०. यथा-सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके कदाचित् सब जीव संक्रामक हैं। कदाचित नाना जीव संक्रामक हैं और एक जीव असंक्रामक है २ तथा कदाचित नाना जीव संक्रामक हैं और नाना जीव असंक्रामक हैं ३। इसी प्रकार अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकोंके भी विपर्यय क्रमसे तीन भङ्गोंका आलाप करना चाहिए। इस प्रकार यह विशेष इस सूत्रके द्वारा जतलाया गया है।
इस प्रकार ओघसे उत्कृष्ट भङ्गविचय समाप्त हुआ। ६२२१. आदेशसे सब मार्गणाओंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है।
विशेषार्थ-आशय यह है कि जिस प्रकार अनुभागसत्कर्मकी अपेक्षा अनुभागविभक्तिके आश्रयते मार्गणाओंमें भङ्गविचयका विचार कर आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिए। उससे यहाँ अन्य कोई विशेषता नहीं है।
* अब जघन्य अनुभागसंक्रमभङ्गविचयका कथन करते हैं। ६ २२२. यह सूत्र सुगम है।
* मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनुभागके नाना जीव संक्रामक होते हैं और नाना जीव असंक्रामक होते हैं ।