Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ * एवमट्ठकसायाणं।
६ १६७. कुदो ? सामित्तभेदाभावादो। एत्युवलब्भमाणथोवयरविसेसपदुप्पायणट्ठमिदमाह
* णवरि अजहएणाणुभागसंकामयंतर केवचिरं कालादो होदि ? ६१६८. सुगमं । * जहएणेण एयसमत्रो। ६ १६६. सव्वोवसामणाए अंतरिदस्स तदुवलंभादो।
® सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहएणाणुभागसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि।
६१७०. सुगमं । * पत्थि अंतरं। ६ १७१. कुदो ? खवणाए जादजहण्णाणुभागसंकामयस्स पुणरुभवाभावादो।
अजहएणाणुभागसंकोमयंतरं केवचिरकालादो होदि ? ६१७२. सुगमं । * जहणणेण एयसमभो । उकस्सेण उवहपोग्गलपरियडें ।
इसी प्रकार आठ कषायोंका अन्तरकाल जानना चाहिए।
६ १६७. क्योंकि मिथ्यात्वके स्वामीसे इनके स्वामीमें कोई भेद नहीं है । अब यहाँ पर प्राप्त होनेवाली थोडीसी विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* कितु इतनी विशेषता है कि इनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना अन्तर है ?
६ १६८. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य अन्तर एक समय है ।
६ १६६ क्योंकि सर्वोपशमनाके द्वारा अन्तरको प्राप्त हुए जीवके उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना अन्तर है?
६ १७०. यह सूत्र सुगम है। * अन्तरकाल नहीं है। ६ १७१. क्योंकि क्षपणामें उत्पन्न हुए जघन्य अनुभागसंक्रमकी पुनः उत्पत्ति नहीं होती। * उनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना अन्तर है ? ६ १७२. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर उपार्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है।