Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* उक्कस्सेण उवड्डपोग्गलपरियहं ।
$ १३५. कुदो १ अद्धपोग्गल परियादिसमए पढमसम्मत्तं घेत्तरणुत्रसमसम्मत्तकाल - अंतरे चेय विसंजोय पुणो वि सव्वलहुं संजुत्तो होदूण आदि करिय अद्धपोग्गलपरियड' परिभमिय तदवसाणे अंतोमुहुत्तसेसे संसारे विसंजोयणापरिणदम्मि तदुवलंभादो ।
होदि ?
[ बंधगो ६
* चदुसंजलण-पुरिसवेदाण' जहणाणुभागसंकामओ केवचिरं कालादो
९ १३६ सुगमं ।
* जहण्णु कस्सेण एयसमत्रो ।
$ १३७. कुदो १ तिन्हं संजलणाणं पुरिसवेदस्स च चरिमाणुभागबंधचरिमफालीए लोहसंजणस्स विसमयाहियावलियसकसायम्मि तदुवलद्धीदो ।
* अजहणणाणुभागसंकामत्रो अण 'ताणुबंधीण भंगो ।
१३८. जहा अणुबंधीणमजहण्णाणुभाग संकामयस्स तिणि भंगा परूविदा तहा एदेसि पि परूवणा कायन्त्रा, विसेसाभावादो ।
* इत्थि एवुंसयवेद-छएणोकसायाणं जहण्णाणु भागसंकाम केवचिरं कालादो होदि ?
* उत्कृष्ट काल उपार्थपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ।
१३५. क्योंकि अर्वपुद्गलपरिवर्तन कालके प्रथम समयमें प्रथम सम्यक्त्वको ग्रहण कर और उपशमसम्यक्त्वके कालके भीतर ही विसंयोजनाकर फिर भी अतिशीघ्र संयुक्त होकर जिसने अनन्तानुबन्धियोंके अजवन्य अनुभागसंक्रमका प्रारम्भ किया है । पुनः उसके साथ कुछ कम अर्धपुग्दलपरिवर्तन काल तक परिभ्रमणकर उक्त कालके अन्तमें संसार में अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर जो पुनः त्रिसंयोजना से परिणत हुआ है उसके उतना काल उपलब्ध होता है ।
* चार संज्वलन और पुरुषवेद के जधन्य अनुभाग के संक्रामकका कितना काल है ? ६ १३६. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
१३७. क्योंकि तीन संज्वलन और पुरुषवेदसम्बन्धी अन्तिम अनुभागबन्धकी अन्तिम फालिके समय तथा लोभसंज्वलनकी भी सकषाय अवस्थामें एक समय अधिक एक आवलि काल शेप रहनेपर उक्त काल उपलब्ध होता है ।
* उनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका अनन्तानुबन्धियोंके समान भङ्ग है ।
९ १३८. जिस प्रकार अनन्तानुबन्धियों के जघन्य अनुभागके संक्रामकके तीन भङ्ग कहे हैं उसी प्रकार इनकी भी प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि इसमें कोई विशेषता नहीं है ।
* स्त्रीवेद, नपुंसक वेद और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ?