Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिअणुभागसँकमे एयजीवेण अंतरं
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६१५३. तं कथं १ अणुकस्साणुभागं संकामेंतो विसंजोइय पुणो अंतोमुहुत्तेण संजुत्तो हो संकामगो जादो, लद्धमंतरं ।
* उक्कस्सेण वेछावद्विसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
§ १५४. तं कथं ? उत्रसमसम्मत्तकाल अंतरे अनंताधिं विसंजोएदूण वेछावट्ठीओ भमि मिच्छत्तं गंतू गावलियादीदं संकामेमाणस्स लद्धमंतरं । एत्थ सादिरेयपमाणमंतोमुहुत्तं । * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साण भागसंकामयंतरं कालादो होदि ?
केवचिरं
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१५५. सुगमं । * जहणेणेयसमओ ।
१५६. तं जहा —–सम्मत्तमुव्वेल्लमाणो उवसमसम्मत्ताहि हो होऊणंतरकरणं परिसमाजियमिच्छत्तपढमद्विदिचरिमसमयम्मि सम्मत्तचरिमफालिं संकामिय उसमवसम्मत्तग्रहणपढमसमए असं कामओ होऊ गंतरिय पुणो विदियसमए उकस्साणुभागसंकामओ जादो, लदूमंतरं होइ । एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि जहणमंतरपरूत्रणा कायन्त्रा ।
६१५३. शंका - वह कैसे ?
समाधान — अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रम करनेवाला जीव अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करके और पुनः अन्तर्मुहूर्त में उनसे संयुक्त होकर उनका संक्रामक हो गया । इस प्रकार इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त प्राप्त हो जाता है ।
* उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है । ६ १५४. शंका
वह कैसे ?
समाधान — क्योंकि उपशमसम्यक्त्वके कालके भीतर अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजना करके तथा दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण करनेके बाद मिथ्यात्वको प्राप्त होकर एक श्रावलि - काल के बाद इनका संक्रम करनेवाले जीवके उक्त अन्तर काल प्राप्त हो जाता है। यहाँ पर साधिकका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ?
६ १५५. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तर एक समय है ।
९ १५६. यथा -- सम्यक्त्वकी उद्व ेलना करनेवाला कोई एक जीत्र उपशम सम्यक्त्वके अभिमुख होकर तथा अन्तरकरणको समाप्त कर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थिति के अन्तिम समयमें सम्यक्त्वकी अन्तिम फालिका संक्रम करके उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करनेके प्रथम समयमें असंक्रामक हो गया और इस प्रकार उसका अन्तर करके पुनः दूसरे समय में उसके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक हो गया। इस प्रकार सम्यक्त्व के उत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त होता है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व के जन्य अन्तरका भी कथन करना चाहिए ।