Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उत्तरपयडिअणुभागसंकमे एयजीवेण अंतरं
६ १४५. अहियारसंभालणसुत्तमेदं सुगमं ।
* मिच्छत्तस्स उक्कस्साणु भागसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ९
१४६. सुगमं ।
* जहणणेण अंतोमुहुत्तं ।
१४७ तं जहा - उक्कस्साणुभागसंकामओ अणुकरसभावं गंतूण जहण्णमंतोमुहुत्तमंतरिय पुणो वि उकस्साणुभागस्स पुत्रं व संकामओ १ जादो, लद्धमुकस्साणुभाग संकामयजहणंतरमंतोमुहुत्तमेत्तं ।
* उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ।
१४८. तं कथं १ सण्णी पंचिंदिओ उक्कस्साणुभागं बंधिय संकामेमाणो कंडय घादेण अकस्से णिवदिय एइ दिएसु अनंतकालमच्छिद्रण पुणो सष्णिपंचिंदियपत्तएसुपजिय उकस्साभागं बंधिदूण संकामओ जादो तस्स लद्धमंतरं होई ।
* अणुक्कस्साण भागसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ?
१४ सुगमं ।
* जहणकस्सेण अंतोमहुतं ।
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१४५. अधिकारी संम्हाल करनेवाला यह सूत्र सुगम है ।
* मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकका कितना अन्तर काल है ? १४६. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
६ १४७. यथा— कोई उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागको प्राप्त होकर और जघन्य मुहूर्त काल तक उत्कृष्टका अन्तर करके फिर भी पहले के समान उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक हो गया । इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त हो गया ।
* उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । ९ १४८ शंका - वह कैसे ?
समाधान — कोई संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करके उसका संक्रम करता हुआ तथा काण्डकघातके द्वारा अनुत्कृष्टको प्राप्त होकर और उसके साथ एकेन्द्रियोंमें अनन्त काल तक रह कर पुनः संज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर तथा उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध कर उसका संक्रामक हो गया । इस प्रकार उसका अन्तरकाल प्राप्त होता है ।
* उसके अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका कितना अन्तर है ?
§ १४६. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
प्रतौ पुर्व [व] कामत्री श्रा० प्रतौ पुब्वं कामत्रो इति पाठः ।