Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० ५८] . उत्तरपयडिअणुभागसंकमे एयजीवेण कालो
* णवरि जहणाणुभागसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? १२६. सुगमं । ॐ जहणणुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ६ १३०. दसणमोहक्खवयचरिमाणुभागखंडए तदुवलंभादो। * अणंताणुबंधोणं जहणणाणुभागसंकामो केवचिरं कालादो होदि ? ६१३१. सुगमं ।
ॐ जहएणु कस्सेण एयसमो।
६ १३२ विसंजोयणापुरस्सरं जहण्गभावेण संजुत्तपढमसमयाणुभागबंधसंकमे लद्धजहण्णभावत्तादो
* अजहपणाणुभागसंकामयस्स तिगिण भंगा।
६ १३३. तं जहा–अगादिओ अपञ्जवसिदो, अणादिओ सपजवसिदो, सादिओ सपजवसिदो चेदि । तत्थ मूलिल्लदोभंगा सुगमा त्ति तदियभंगगयविसेसपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं
* तत्थ जो सो सादिश्रो सपजवसिदो सो जहणणेण अंतोमुहुत्तं ।
६१३४. तं जहा—जहण्गादो अजहण्णभावमुवणमिय पुणो विसयलहुँ विसंजोयणाए परिणदो लद्धो पयदजहण्णकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो ।
* किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके जघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ?
६ १२६. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।
६ १३०. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके अन्तिम अनुभागकाण्डकमें अम्तर्मुहूर्न काल पाया जाता है।
* अनन्तानुबन्धियोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ? ६१३१. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
६ १३२. क्योंकि विसंयोजनापूर्वक संयुक्त होनेके प्रथम समयमें जो जघन्य अनुभागबन्ध होता है उसके संक्रममें जघन्यपना पाया जाता है।
* उनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकके तीन भङ्ग हैं।
६१३३. यथा अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त । उनमेंसे मूलके दो भङ्ग सुगम हैं, इसलिए तृतीय भङ्गगत विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* उनमेंसे जो सादि-सान्त भङ्ग है उसका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है।
६ १३४. यथा-जघन्यसे अजघन्यभावको प्राप्त होकर फिर भी जो अतिशीघ्र विसंयोजनाके द्वारा परिणत हुआ है उसके प्रकृत जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त हुआ।