Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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[ बन्धगो ६
* जहणणेण अंतोमुहुत्तं ।
§ १०७. उकस्साणुभागसंकमादो खंडयघादवसेणाणु कस्ससंकामयतमुत्रणमिय पुणो हिस्से काले उकस्साणुभागसं कामयत्तमुत्रगयम्मि तदुवलंभादो ।
* उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ।
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
११०८. उकस्साणुभागसंकमादो खंडयघादवसेणा णुकस्सभावमुत्रगयस्स एइ दियत्रियलिंदिएसु उक्कस्साणुभागबंधविरहिए असंखेजपोग्गलपरियट्टमेत्तकालमणुक्कस्सभावाव
* एवं सोलसकसाय- वणोकसायाणं । १०६. सुगममेदमप्पणासुतं ।
* सम्मत्त-सम्म।मिच्छुत्ताणमुक्कस्साणुभागसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ।
११०. सुगमं ।
* जहणणेण अंतोमुहुत्तं ।
१११. तं जहा – एको णिस्संतकम्मियमिच्छा इट्ठी पढमसम्मत्तं पडवजिय सम्माइट्ठपढमसमए मिच्छत्ताणुभागं सम्मत्त - सम्मामिच्छत्तसरूवेण परिणमात्रिय विदियसमयप्यहुडि
* जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ।
९ १०७. क्योंकि उत्कृष्ट अनुभाग के संक्रमसे काण्डकघात के द्वारा अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रमको प्राप्त हो कर जो फिर भी अतिशीघ्र कालके द्वारा उत्कृष्ट अनुभागके संक्रमको प्राप्त होता है। उसके अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है ।
* तथा उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है ।
§ १०८. क्योंकि उत्कृष्ट अनुभाग के संक्रमसे काण्डकघातवश अनुत्कृष्ट अनुभागको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्धसे रहित एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण काल तक परिभ्रमण करनेवाले जीवके उतने काल तक मिध्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभाग संक्रममें अवस्थान देखा जाता है ।
* इसी प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका काल जानना चाहिए । १०६. यह अर्पणासूत्र सुगम है ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्यके उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ?
११०. यह सूत्र सुमन है ।
* जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ।
१११. यथा - जिसके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता नहीं है ऐसा एक मिध्यादृष्टि जीव प्रथमोपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कर तथा सम्यग्दृष्टि होनेके प्रथम समयमें मिध्यात्वके भागको सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वरूपसे परिणमा कर और दूसरे समय से उनके उत्कृष्ट