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कॅसाय पाहुडे
(३) कसायपाहुडचूर्णिमें नपुंसकवेदके उत्कृष्ट प्रदेशसत्त्वका स्वामित्व इस प्रकार बतलाया गया है
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पृ० १८६, सू० १०• णघु सयवेदस्स उक्कस्तयं पदेस संतकम्मं कस्स १११. गुणिक मंसि ईसा गदो तस्स चरिमसमयदेवस्स उक्कस्तयं पदेससंतकम्मं । उक्त चूर्णिका मिलान कम्मपयडी चूर्णि से कीजिए
सो चैव गुणि यकम्मंसिगो सव्वावासगाणि काउं ईसाणे उत्पन्नो । तत्थ संकिलेसेणं भूयो नपुं सगवेयमेव बंधति । तत्थ बहुगो पदेसणिचयो भवति, तस्स चरिमसमये वट्टमाणस्स उक्कोसपदेससंतं । ( कम्मप० सत्ता० पृ० ५७ )
कम्मपयडीचूर्णिमे जो बात जरा स्पष्टीकरण के साथ कही गई है, वही कसायपाहुडचूर्णिमें उसकी शैलीके अनुसार संक्षिप्तरूपसे कही है ।
(४) स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशसत्त्व के स्वामित्वका वर्णन कसायपाहुडचूर्णि में इस प्रकार किया गया है
पृ० १८६, सू० १२. इत्थिवेदस्स उक्कस्सयं पदेस संतकम्मं कस्स १ १३. गुणिदकम्मंसि संखेज्जवरसाउए गदो, तम्मि पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागेण जम्हि पूरिदो तस्स इत्थवेदस्स उक्कस्तयं पदेससंतकम्मं ।
अब उक्त चूर्णिसूत्रों का मिलान कम्मपयडी चूर्णि से कीजिए—
ईसाणे नपुं सगवेयं पुञ्चपरगेण पूरिता ततो उव्वट्टित्त लहुमेव 'असंखवासी सु' त्ति - भोगभूमिगेसु उप्पन्नो । तत्थ 'पल्लासंखियभागेण पूरिए इत्थवेयस्स' चि तत्थ संकिलेसेणं पलियोवमस्स असंखेज्जे का लेणं इत्थवे पूरितो भवति, तंमि समते इत्थिवेयस्स उक्कोसपदेससंतं । ( कम्मप० सत्ता० पृ० ५८ )
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इस उद्धरण में जो उद्धृत वाक्यांश है, वह कम्मपयडीके उस गाथाके है, जिसपर कि उक्त चूर्णि लिखी गई है। दोनोंके मिलानसे पाठक इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि दोनों चूर्णियोकी रचना समान होते हुए भी और दोनों में अपनी-अपनी रचनाको विशिष्टता होते हुए भी एक कर्तृकताकी छाप स्पष्ट है ।
(५) कसायपाहुडर्णिमें संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभके उत्कृष्ट प्रदेशसकर्मका स्वामित्व इस प्रकार बतलाया गया है
पृ० १८७, सू० १६. तेणेव जाधे पुरिसवेद - छोकसायाणं पदेसग्गं कोधसंजलणे पक्खित्तं ताधे को संजलणस्स उक्कस्तयं पदेससंतकम्मं । १७. एसेव कोधो जाधे माणे पक्खितो ताधे माणस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्मं । १८. एसेवमाणो air माया पक्खिचो ताधे मायासजलणस्स उक्कस्यं पढ़े सतकम्मं । १६. एसेव माया जाधे लोभसंजलणे पक्खित्ता ताथे लोभसंजलणस्स उक्कस्तयं पदेस संतकंम्म | अब उक्त चूर्णिसूत्रोंका मिलान कम्मपयडी - चूर्णि से कीजिए