________________
कसायपाहुडसुत्त
यतः श्रा० यतिवृषभने सतक और सित्तरी पर चूर्णि रची है, जैसा कि आगे सिद्ध किया गया है-अतः इन दोनोका उनके सम्मुख उपस्थित होना स्वाभाविक ही है ।
उपसंहार-ऊपरके इस समग्र विवेचनका फलितार्थ यह है कि कसायपाहुड-चूर्णिकारके सम्मुख षट्खंडागमसूत्र, कम्मपयडी सतक और सित्तरी अवश्य रहे हैं।
चूर्णिकार यतिवृषभकी अन्य रचनाएं आ० यतिवृषभकी दूसरी कृतिके रूपसे तिलोयपएणत्ती प्रसिद्ध है और वह सानुवाद मुद्रित होकर प्रकाशमें भी आ चुकी है। हालांकि, उसके वर्तमानरूपमें अनेक प्रक्षिप्त स्थल ऐसे पाये जाते हैं, जिनके कि यतिवृषभ-द्वारा रचे जाने में सन्देह है।
आ० यतिवृषभने प्रस्तुत कसायपाहुड-चूर्णि और तिलोयपण्णत्तीके अतिरिक्त अन्य कौन-कौन-सी रचनाएं की, यह विषय अद्यावधि अन्वेषणीय बना हुआ है ।
चूर्णिसाहित्यका अनुसन्धान करने पर कुछ और रचनाएं भी आ० यतिवृषभके द्वारा रचित जात होती हैं, अतएव यहाँ उनपर कुछ प्रकाश डालना आवश्यक है।
कम्मपयडीका ऊपर उल्लेख किया जा चुका है और यह बतलाया जा चुका है कि वह आ० यतिवृषभके सामने उपस्थित ही नहीं थी, बल्कि उन्होंने प्रस्तुत चूर्णिमे उसका भर-पूर उपयोग भी किया है । उस कम्मपयडीकी एक चूणि अभी कुछ दिन पूर्व श्री मुक्ताबाई ज्ञानमन्दिर डभोई (गुजरात) से प्रकाशित हुई है जिसपर किसी कर्ता-विशेषका नाम नहीं दिया गया है किन्तु 'चिरन्तनाचार्य-विरचित-चूा समलंकृता' ऐसा वाक्य मुद्रित है, जिसका कि अर्थ हैकिसी प्राचीन आचार्य से विरचित चूर्णिसे युक्त यह कर्मप्रकृति है । अर्थात् उसके कर्ता अभीतक अज्ञात हैं । उस चूर्णिका जव हम कसायपाहुड-चूर्णिके साथ तुलनात्मक अध्ययन करते हैं, तो उसके श्रा० यतिवृपभ-रचित होनेमे सन्देहकी कोई गुजायश नहीं रह जाती है। यहां पर दोनों चूर्णिोंके कुछ समान अवतरण प्रस्तुत किये जाते हैं।
ऊपर कम्मपयडीकी जिन गाथाओंको कसायपाहुड-चूर्णिका आधार बताया गया है, उन सबकी चूर्णि कसायपाहुडके उक्त स्थलवाले चूर्णिसूत्रोंके साथ प्रायः शब्दशः समान है, अर्थतः तो पूर्ण साम्य है ही। फिर भी दोनोंके कुछ अन्य समान अवतरण देना इसलिए आवश्यक प्रतीत होता है कि जिससे पाठकगण भी उनपर स्वयं विचार कर सकें।
(१) मोहकर्मके १, २, ३, ४, ५, ११, १२, १३, २१, २२, २३, २४, २६, २७, और २८ प्रकृतिरूप १५ प्रकृतिसत्त्वस्थान होते हैं, इनकी प्रकृतियोंका वर्णन कसायपाहुडचूर्णि और कम्मपयडीचूर्णिमें समान होते हुए भी अनुलोम प्रतिलोमक्रमसे किया गया है। नीचे दिये जाने वाले दोनोंके अवतरणोंसे दोनों चूर्णियोंके एक-कर्तृक होनेकी पुष्टि बहुत कुछ अंशमें होती है।
कसायपा० पृ० ५८, मू० ४२. एक्स्सेि विहत्तियो को होदि ? लोहसंजलणो ४३. दोण्हं विहचिो को होदि ? लोहो माया च । ४४. तिरह विहची लोहसंजलण-मायासंजलण-माणसंजलणाओ। ४५. चउराहं विहत्ती चत्वारि संजलणाओ। ४६. पंचएहं विहत्ती चचारि संजलणाश्रो पुरिसवेदो च । ४७. एकारसण्हं विहत्ती एदाणि चेव पंच छएणोकसाया च । ४८. पारसएहं विहत्ती एदाणि चव इत्थिवेदो च । ४६. तेरसण्हं विहत्ती एदाणि चेव णसयवेदो च । ५०. एक्कवीसाए विहवी