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कसायपाहुडसुत्त ज्जेसु द्विदिवंधेसु गदेसु सुदणाणावरणीयं अचक्खुदंसणावरणीयं भोगतराइयं च वधेण देसघादि करेदि । ११६. तदो संखेज्जेसु द्विदिवंधेसु गदेसु चक्खुदंसणावरणीयं बंधेण देसघादि करेदि । १२०. तदो संखेज्जेसु हिदिबंधेसु गदेसु आभिणिवोहियणाणावरणीयं परिभोगंतराइयं च बंधेण देसघादिं करेदि । १२१. संखेज्जेसु द्विदिधेसु गदेसु वीरियंतराइयं बंधेण देसघादि करेदि । १२२. एदेसि कम्माणमखवगो अणुवसामगो सब्बो सव्वघादिं बंधदि ।
अब उक्त सर्व चूर्णिसूत्रोके आधारभूत कम्मपयडीकी गाथाओको देखिए
अहुदीरणा असंखेज्जसमयपवद्धाण देसघाइत्थ । दाणंतरायमणपजवं च तो अोहिदुगलाभो ॥ ४० ॥ सुयभोगाचखूओ चक्खू य ततो मई सपरिभोगा।
विरियं च असे ढिगया बंधंति ऊ सव्वघाईणि ॥ ४१ ॥ ( उपश०)
पाठक स्वयं ही अनुभव करेंगे कि इन दोनों गाथाओंमें प्रतिपादित अर्थको किस सुन्दरनाके साथ चूर्णिसूत्रोंमे स्पष्ट किया गया है।
___ कसायपाहुडचूर्णिमे उपर्युक्त स्थलसे अर्थात् पृ० ६८८ से लेकर पृ० ७२१ तकके सर्वचूर्णिसूत्रोंका अाधार कम्मपयडीके इसी उपशमनाकरणकी न० ४२ से लेकर ६५ तक की गाथाएँ हैं यह किसी भी तुलना करने वाले व्यक्तिसे अव्यक्त न रहेगा। विस्तारके भयसे यहाँ आगेके उद्धरण नहीं दिये जा रहे है। उक्त तुलनात्मक अवतरणोंसे स्पष्ट है कि चूर्णिकारके सम्मुख कम्मपयडी अवश्य रही है। फिर भी उक्त सर्व प्रमाणोंसे जोरदार और प्रबल प्रमाण स्वयं यतिवृपभाचार्यके द्वारा किया गया वह उल्लेख है, जिसमें कि उन्होंने स्वयं ही कम्मपयडीका उल्लेख किया है।
इसी उपशमनाधिकारमे देशकरणोपशमनाके भेद बतलाते हुए कहा है
पृ० ७०८, मृ० ३०३. देसकरणोवमामणाए दुवे णामाणि देसकरणोवसामणा ति वि अप्पसत्थ-उवसामणा ति वि । ३०४. एसा कम्मपयडीसु ।
अर्थात् देशकरणोपशामनाके दो नाम हैं-देशकरणोपशामना और अप्रशस्तोपशामना । इस देशकरणोपशामनाका वर्णन कम्मपयडी में किया गया है।
यहाँ पर श्रा० यतिवृपभने जिम कम्मपयडीका उल्लेख किया है, वह निश्चयत' यही उपलब्ध कम्मपयडी है क्योंकि, इसमें उपशमना प्रकरणके भीतर गाथाङ्क ६६ से लेकर ७१ वीं गाथा तक देशोपशमनाका वर्णन किया गया है। कम्मपयडीके चूर्णिकार देशोपशामनाके वर्णन करनेके लिए गाथाका अवतार करते हुए कहते है
सव्वसामणा सम्मता । इयाणिं देसोपसमणा । तीसे इमे भेयापगइ-ठिई-अणुभाग'पएसमूलुत्तराहि पविभत्ता। देसकरणावममणा तीए समियस्स अट्ठपयं ॥ ६६ ।। ( उपशमना० )