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प्रस्तावना अर्थात् देशकरणोपशमनाके चार भेद हैं-प्रकृतिदेशोपशमना, स्थितिदेशोपशमना, अनुभागदेशोपशमना और प्रदेशदेशोपशमना । इन चारों ही प्रकार वाली देशोपशमनाओंके भी मूलप्रकृतिदेशोपशमना और उत्तरप्रकृतिदेशोपशमनाकी अपेक्षा दो दो भेद हैं। उस देशकरणोपशमनाका यह अर्थपद है। अर्थात् अब आगे उसका लक्षण कहते हैं।
इस प्रकार देशकरणोपशमनाका निरूपण कम्मपयडीमें ६ गाथाओंके द्वारा किया गया है। यतिवृषभके द्वारा इस प्रकार कम्मपयडीका स्पष्ट उल्लेख होने पर तथा कम्मपयडीमें देशकरणोपशमनाका वर्णन पाये जाने पर कोई कारण नहीं है कि कम्मपयडीका उनके सम्मुख अस्तित्व न माना जाय ।
प्रश्न-कम्मपयडीमें देशकरणोपशमनाका वर्णन क्यों किया, कसायपाहुडमें क्यों नहीं किया ?
उत्तर—मोहकर्मकी सर्वोपशमना ही होती है, देशोपशमना नहीं। तथा शेष सात कर्मोकी देशोपशमना ही होती है, सर्वोपशमना नहीं। चकि, कषाय मोहकर्मका ही भेद है, अतः कसायपाहुडमें उसकी सर्वोपशमनाका वर्णन किया गया। किन्तु शेष कर्मोंका वर्णन कसायपाहुडमें नहीं है, अतः देशोपशमनाका वर्णन उसमें नहीं किया गया। पर कम्मपयडीमें तो आठों ही कर्मोंका वर्णन किया गया है, अतएव उसमें देशोपशमनाका वर्णन किया जाना सर्वथा उचित है।
. इसके अतिरिक्त आव्यतिवृषभको जिन आर्यनागहस्तीका शिष्य या अन्तेवासी बताया जाता है, और जिनके उपदेशको पवाइज्जत उपदेश कह करके ऑ० यतिवृपभने प्रकृत विषयके प्रतिपादन करने में अनुसरण करके महत्ता प्रदान की है, उनके लिए पट्टावलीकी पूर्वोद्धृत गाथामें 'कम्मपयडीपहाणाणं' विशेषण दिया गया है। जब यतिवृषभके गुरु कम्मपयडीके प्रधान व्याख्याताओंमें थे, तो यतिवृषभके सामने तो उसका होना स्वतः सिद्ध है।
___ एक खास बात और भी ध्यान देनेके योग्य है कि दि० परम्परामें आ० भूतबलि और यतिवृषभका एक मत-भेद नवें गुणस्थानमें सत्त्वसे व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियोंके विषयमें है। आ० भूतबलिके उपदेशानुसार नवें गुणस्थानमें पहले १६ प्रकृतियोंकी सत्त्व-व्युच्छित्ति होती है, पीछे आठ मध्यम कषायोंकी। किन्तु यतिवृषभ पहले पाठ मध्यम कषायोंकी सत्त्वव्युच्छित्ति कहते हैं और पीछे १६ प्रकृतियोंकी । यतिवृषभ इस विषयमें स्पष्टरूपसे कम्मपयडीका अनुसरण कर रहे हैं,क्योंकि उसमें पहले आठ मध्यम कषायोंकी और पीछे १६ प्रकृतियोंकी सत्त्वव्युच्छिवि बतलाई गई है । यथा
खवगाणियट्टि-श्रद्धा संखिज्जा होंति अढ वि कसाया। णिरय-तिरिय तेरसगं णिद्दाणिद्दातिगेणुवरि ॥ ६॥ ( सत्ताधि०)
अर्थात् क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके सख्यात भाग व्यतीत होने पर पहले आठों ही मध्यम कषायोंकी सत्त्वव्युच्छिति होती है । तत्पश्चात् नरक और तिर्यग्गति-प्रायोग्य तेरह तथा निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि ये तीन, इस प्रकार सोलह प्रकृतियोंकी सत्त्वव्युच्छित्ति होती है।
___ कम्मपयडीके उक्त प्रमाणसे स्पष्ट है कि यत' आ० यतिवृपभ प्रायः सभी सैद्धान्तिक मत-भेदोंके स्थलों पर कम्मपयडीका अनुसरण करते है, अतः कम्मपयडी उनके सम्मुख अवश्य