Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण निषध देशके निवासी निषध लोग निषादोंसे बिल्कुल भिन्न थे। निषाद अनार्यजातिके लिये कहा जाता था, किन्तु निषध लोग आर्य थे।
शतपथ ब्राह्मण ( १०, ६-१-२) और छान्दोग्य उपनिषदमें (५-२-४ ) कैकयोंके राजा अश्वपतिका नाम आया है, जो कुछ ब्राह्मणोंको शिक्षण देता था और बड़ा विद्वान था। उत्तर कालमें कैकय लोग सिन्धु और वितस्ताके मध्य भागमें वस गये थे। पौराणिक परम्पराके अनुसार कैकय अणुओंके वंशज थे।
वैदिक ग्रन्थों में अन्य भी अनेक छोटी बड़ी जातियोंका निर्देश है जिन्हें यहाँ छोड़ दिया गया है। ___ एतरेय ब्राह्मणमें आन्ध्रों पुन्ड्रों, शवरों, पुलिन्दों और मूतिबोंका उल्लेख दस्युके रूपमें आया है। कहा जाता है कि विश्वामित्रके पचास पुत्रोंने शुनःशेपका उत्तराधिकारी होना स्वीकार नहीं किया। अतः विश्वामित्रने उन्हें शाप दे दिया। ये उन्हींके वंशज हैं और इसलिये वे आर्योंकी परिधिसे बाहर थे। महाभारतमें आन्ध्रों, पुलिन्दों और शवरोंको दक्षिणकी जातियाँ बतलाया है।
शतपथ ब्राह्मणमें म्लेच्छ शब्दका प्रयोग अत्याचारीके अर्थमें पाया जाता है। वे म्लेच्छ लोग 'हेऽरयः' के स्थानमें 'हे लवो' बोलते थे। यह बतलाता है कि वे आर्य भाषाभाषी थे और प्राकृत रूपोंका प्रयोग करते थे।
उत्तरकालीन संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थोंमें निषादोंका निर्देश है, जिससे प्रकट होता है कि निषाद किसी खास जातिका नाम नहीं था। किन्तु जो अनार्य जातियाँ आर्योंके कब्जे में नहीं थीं उन सबके लिये 'निषाद' कहा जाता था। ये निषाद चार वों से पृथक थे। वेवर उन्हें यहांका मूलनिवासी मानते थे।
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