Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमूत्रे एका 'लिक्षा' इत्युच्यते, 'अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया' अष्ट लिक्षाः सा एका यूका इत्युच्यते, 'अट्ठ जूयाओ से एगे जबमज्झे' अष्टयूकाः तद् एकं यवमध्यमुच्यते, 'अट्ठ जवमज्झाओ से एगे अंगुले' अष्टौ यवमध्यानि तत् एकम् अङ्गलमुच्यते । 'एएणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलानिपादो' एतेन उपरिवर्तितेन अलप्रमाणेन षडङ्गुलानि एक पाद उच्यते, 'बारस अंगुलाई विहत्थी' द्वादश अङ्गलानि एका वितस्तिः अर्धहस्तः, 'चउवीस अंगुलाई रयणी' चतुर्विशतिरङ्गलानि रत्निः एकहस्तप्रमाणम् , 'अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी अष्टाचत्वारिंशद् अङ्गलानि कुक्षिः, हस्तद्वयप्रमाणम् छन्नउइ अंगुलाणि मणुस्साणं अटू बालग्गा सा एका लिक्खा' पूर्वविदेहके मनुष्योंके जो आठ बालाग्र होते हैं उनके बराबर एक लिक्षा होती है 'अट्टलिक्खाओ सा एगा जया, अट्ट जयाओसे एगे जवमज्झे, अट्ठजबमझाओ से एगे अंगुले' आठ लिक्षाओंका एक जू होता है। आठ जूका एक यवमध्यभाग होता है। तथा आठ यवमध्यौंको एक अंगुल होता है। 'एएणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलानि पादो' इस अंगुलप्रमाणसे ६ अंगुलोंका एक पाद होता है । 'बारस अंगुलाईविहत्थी' १२ अंगुलोंका एक बेंत-बीता होता है अर्थात आधा हाथ होता है। 'चउवीसं अंगुलाई रयणी' २४ अंगुलका एक हाथ होता है। 'अडयालीस अंगुलाइंकुच्छी' ४८ अंगुलोंकी एक कुक्षी दो हाथ होती है । 'छन्नउह अंगुलानिसे एगे दंडेइ वा' ९६ अंगुलाका एक दण्ड होता है। अथवा मे मारा थाय छे. 'एवं पुञ्चविदेहाणं मणुस्साणं अट्ट बालग्गा सा एगा लिक्खा' पूविना मनुष्याना मा मातायोना प्रभाशवाणी मे सिक्षा (4) डाय छ, 'अट्ट लिक्खाओ सा एगा जया, अठ जयाओ से एगे जवमझे, भट जवमज्झाओ से एगे अंगुले' मा दीपना प्रभाशवाणी मे હોય છે, આઠ જૂ જેટલા પ્રમાણુવાળે એક જવમધ્યભાગ હોય છે અને આઠ યવમધ્ય જેટલા પ્રણાણવાળું એક અંગુલ હોય છે.
'एए णं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलानि पादो' मा मत प्रमाणुने माघारे गणतरी श्ता ६ असोना मे पा' यय छे. 'बारस अगुसाई विहत्थी' मार मांगजनी मे त थाय छे. (वेत मेले मर्धा हाय रे भा५). 'चउचीसं अगुलाई रयणी' २४ भYखनी ५२।१२ मे हाथ थाय छे. 'अडयालीसं अगुलाई कच्छी, ४८ अगुवानी सरास२ ४ gक्षी ( साथ २९ भा५) थाय छे. छन्नउइ अंगुलानि से एगे दंडेइ वा ६६ भ ने मे 3' थाय छ, अथवा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫