Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे भूमिम् उपयात:=संप्राप्तः 'पुरओ य से सके देविंदे देवराया एगं महं अभेजकवयं वइरपडिरूवगं विउव्यित्ता णं चिटई' पुरतश्च अग्रे खलु पूर्वमेव इत्यर्थः स शक्रो देवेन्द्रः देवराजः एकं महान्तम् अभेद्यकवचम् परशस्त्राच्छेद्यकवचं वज्रपतिरूपकं वज्रसमानं विकुर्वित्वा-विकुर्वणया निष्पाद्य खलु तिष्ठति-स्थितः, 'एवं खलु दो इंदा संगाम संगामें ति, तं जहा-देविंदे य, मणुइंदे य' एवं खलु द्वौ इन्द्रौ संग्राम संग्रामयेते युद्धं प्रारब्धवन्तौ, तद्यथादेवेन्द्रश्च शक्रेन्द्रः कोणिकमित्रम्, मनुजेन्द्रश्च-मनुष्यराजः, कूणिको राजा 'एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया पराजिणित्तए' एक हस्तिनाऽपि खलु कूणिको राजा शत्रु पराजयितुं परारितुं प्रभुः समर्थः अभूत, तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटयं संगाम संगामेमाणे' ततः खलु स कुणिको राजा महाशिलाकण्टक संग्राम में प्रविष्ट हो गये । 'पुरओ य से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेजकवयं वइरपडिरूवगं विउव्वित्ताणं चिट्ठई' प्रविष्ट होते ही उनके सामने देवेन्द्र देवराज शक्र एक बडे भारी अभेद्य कवच को जी कि वज्र के जैसा था विकुर्वित करके खडा हुआ दिखाई पडा । 'एवं खलु दो इंदा, संगामं संगामेंतिते जहा देविंदे य मणुइंदे य' उसी समय उन दोनों देवेन्द्र और मनुजेन्द्रोंने युद्ध करना प्रारंभ कर दिया। देवेन्द्र शक था और मनुजेन्द्र कूणिक थे । 'एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया पराजिणित्तए' उस युद्धमें कूणिक राजाने एक हाथीके बलपर ही उस अपने शत्रुको पराजित करदिया । 'तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटय संगामं संगामे 'उवागच्छित्ता' त्यi rsp. 'महासिलाकंटय संगामं ओयाए' तम्या मशिला ४४ साभमां शामिल या या. 'पुरओय से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेजकवयं वइरपडिरूवगं विउव्वित्ताणं चिट्ठइ वो भए त्या प्रवेश ये है તુરત જ દેવેન્દ્ર દેવરાય શક એક વજન જેવા અભેદ્ય અને ઘણું ભારે કવચની विधु'एरीने तेमनी सामे उपस्थित थ गयो. 'एवं खलु दो इंदा, संगामं संगामें ति-तंजहा देविंदे य मणुइंदेय' मा रीते मन्ने छन्द्रो- (देवेन्द्र श मने नरेन्द्र भूणि) युद्ध २३ ४२री दीधु. “एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया पराजिणित्तए' युद्धमा ४ि रात मेस थीनी महथा १ शत्रुभाने पति ४२वाने समय ता. 'तएणं से कूणिए राया महासिलाकंटय संगाम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫