Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 779
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ९ स.५ वरुणनागनप्तृकवर्णनम् ७६१ पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे' ततः खलु स वरुणो नागनप्तकः तेन पुरुषेण गाढप्रहारीकृतः सन् 'अत्थामे, अबले, अवीरिए, अपुरिसकार परक्कमे अधारणिजमिति कटु तुरए निगिण्हइ' अस्थामा सामान्यतः शक्तिरहितः, अबल: शारीरिकशक्तिरहितः, अवीर्यः मानसशक्तिरहितः अपुरुषकारपराक्रमः-पुरुषाभिमानलक्षणपुरुषकारपराक्रमशून्यः, अधारणीयम्आत्मनः स्वेन धारणं कर्तु मशक्यमिति कृत्वा तुरगान् अश्वान् निगृपाति-अवरणद्धि ' तुरए निगिह्नित्ता रहं परावत्तेई' तुरगान् निगृह्य रथं परावर्तयति, 'रह परावत्तित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खमई' रथं परावर्त्य रथमुसलात् संग्रामात् प्रतिनिष्काम्यति=निर्गच्छति, 'पडिनिक्खमित्ता एगंतमंत अवक्कमइ' प्रतिनिष्क्रम्य= निर्गत्य एकान्त =विजनम् गाढप्पहारीकए समाणे' अब जब वे नागपौत्र वरुण उस पुरुष द्वारा पहिले घायल किये गये, तब वे 'अत्थामे, अबले, अवीरिए, अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिजमित्ति कटु तुरए निगिण्हइ ' सामान्यतः शक्तिसे रहित बनगये, शारीरिक शक्ति उनकी बिलकुल ढीली पड गई, उनकी मानसशक्तिका बिलकुल हास हो गया अर्थात् पुरुषार्थ रहित हो गये अतः वे शक्तिहीन हो गये कि उनसे युद्ध करना बिलकुल असंभव जैसा हो गया अतः इसी ख्यालसे वे युद्धसे विमुख होकर उत्साह रहित हो गये और आगे बढनेसे घोडोंको रोक दिया । रोककर रथको भी युद्ध स्थलसे वापिस कर लिया 'रहे परावत्तित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खमई' इस प्रकार रथको मोडकर वे उस रथमुसल संग्रामसे निकल आये अर्थात् विमुख हो वो थी २डित १४ गये.. 'तएणं से वरुणे णागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारी कए समाणे ते पुरुषना ते 6 प्रा२था नागपौत्र १२६ प तेना पाडता घायस थ यू४यो ता. 'अत्थामे, अबले, अबीरिए, अपुरिसकारपरकमे अधारणिज्जमिति कट तुरए निगिण्हइ तेथी तो सामान्यत: शतिया रहित થઈ ગયા, તેમની શારીરિક શકિત બિલકુલ શિથિલ પડી ગઈ, તેમની માનસિક શક્તિને પણ બિલકુલ હ્રાસ થઈ ગયો, તે પુરુષાર્થથી રહિત થઈ ગયા, તેમણે વિચાર કર્યો કે આ પરિસ્થિતિમાં મારાથી યુદ્ધ કરી શકાશે નહીં, હું યુદ્ધમાં ટકી શકીશ નહીં. તે કારણે તેમનું મન યુદ્ધ પ્રત્યે ઉદાસીન થઈ ગયું. તેમણે ઘોડાને થોભાવ્યા, અને श्यने युद्धभूमिमाथा पाछी पाया. 'रहं परावत्तित्ता' मा शत २थने पाछे जान 'रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खमइ' तेसो श्यभुसल सश्राममाथी महार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

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