Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 801
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. १० सू.१ धर्मास्तिकायादिवर्णनम् ७८३ ज्ञातपुत्रः चतुरः अस्तिकायान् अजीवकायान् प्रज्ञापयति, तद्यथा-धर्मास्तिकायम् अधर्मास्तिकायम्, आकाशास्तिकायम्, पुद्गलास्तिकायम् एकं च खलु श्रमणो ज्ञातपुत्रो जीवास्तिकायम् अरूपिकायं जीवकायं प्रज्ञापयति । तत्र खलु श्रमणो ज्ञातपुत्रः चतुरः अस्तिकायान् अरूपिकायान् प्रज्ञापयति, तद्यथा-धर्मास्तिकायम्, अधर्मास्तिकायम्, आकाशास्तिकायम्, जीवास्तिकायम्, एवं च खलु श्रमणो ज्ञातपुत्रः पुद्गलास्तिकायं रूपिकायम् अजीवकार्य प्रज्ञापयति, तत् कथमेतत् जो इस प्रकारसे हैं (धम्मत्थिकाय जाव आगासस्थिकाय) धर्मास्तिकाय यावत् आकाशास्तिकाय है (तत्थ णं समणे णायपुत्ते चत्तारि अधिकाए अजीवकाए पन्नवेइ) इनमें श्रमण ज्ञातपुत्र महावीरने चार अस्तिकाय अजीवकाय कहे हैं। (तंजहा) जैसे (धम्मत्थिकाय अधम्मस्थिकाय, आगासत्थिकायं, पोग्गलत्थिकाय) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय (एगं च ण समणे णायपुत्ते जीवस्थिकाय अरूविकाय जीवकाय पण्णवेइ) श्रमण ज्ञातपुत्रने एक जीवास्तिकायको अरूपीकाय जीवकाय कहा है । (तत्थ णं समणे णायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अरूविकाए पण्णवेइ) तथा उन्हीं श्रमण ज्ञातपुत्र महावीरने चार अस्तिकायोंको अरूपी काय कहा है। (तंजहा) जो इस प्रकारसे हैं (धम्मत्थिकाय, अधम्मत्थिकार्य आगासत्थिकायजीवत्थिकाय) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय (एगं च ण समणे णायपुत्ते पोग्गलत्थिकाय, रूविकाय आगासस्थिकाय) धारितायथा एन. मास्तिय पर्य-तना पांय मस्तियने मही अड ४२१। (तत्थण समणे णायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अजीवकाए पनवेड) त पय मस्तियमांना या२ मस्तियने श्रमण ज्ञातपुत्र महावीरे भ७१४य या छे. (तजहा) ते यानां नाम नाथे प्रभारी छ- (धम्मत्थिकाय, अधमत्थिकाय, आगासस्थिकाय, पोग्गलस्थिकाय) यास्तिय, मस्तिताय, मा.शास्ति४५ मने हमारतय. (एगं च ण समणे णायपुत्रो जीवत्थिकाय अरूविकायं जीवकाय पण्णवेइ ) श्रम ज्ञातापुत्र महावीरे से मात्र वास्तियने २३पीय३५ ७१४य ४युं छे, (तत्थणं समणे णायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अरूविकाए पण्णवेइ) तथा 2. श्रम शातपुत्र भाडावारे या२ मस्तियाने म३पी या . (तजहा) ते या२ २५३४ी मस्तियो नीचे प्रमाणे छ(धम्मत्थिकाय', अधम्मत्थिकाय, आगासत्थिकाय, जीवस्थिकाय) पारिताय, मधारित५, Pustaurasiय भने स्तिय. (एगं च समणे णायपुत्ते શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

Loading...

Page Navigation
1 ... 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866