Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.१० मू. १ धर्मास्तिकायादिवर्णनम् ७८१ सत्थिकायं, तं चेव जाव रूविकायं अजीवकायं पन्नवेइ, से कहमेयं गोयमा ! एवं ?। तए णं से भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एवं वयासी-नो खलु वयं देवाणुप्पिया ! अस्थिभावं नत्थि-त्ति वयामो, नत्थिभावं अत्थि-त्ति वयामो, अम्हे णं देवाणुप्पिया! सवं अत्थिभावं अत्थि-त्ति वयामो, सव्वं नत्थिभावं नत्थि-त्ति वयामो, तं चेयसा (वेदसा) खलु तुब्भे देवाणुप्पिया! एयमह सयमेव पच्चुवेक्खह-त्ति कट्ट ते अन्नउत्थिए एवं वयासी एवं वइत्ता जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, एवं जहा नियंटुदेसए जाव भत्त-पाणं पडिदंसेइ, भत्त-पाणं पडिदंसित्ता, समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता, नच्चासन्ने जाव पज्जुवासइ ॥ सू० १ ॥
छाया-तस्मिन् काले, तस्मिन् समये राजगृहं नाम नगरम् आसीत्, वर्णकः, गुणशिलकं चैत्यं वर्णकः, यावत् पृथिवीशिलापट्टकः, वर्णकः, तस्य खलु गुणशिल
धर्मास्तिकाय आदिके विषय में अन्यतीर्थिकजनोंकी वक्तव्यता"तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल और उस समयमें (रायगिहे नामं नयरे होत्था) राजगृह नामका नगर था (वण्णओ) वर्णन (गुणसिलए चेहए) गुणशिलक नामका एक चैत्य उद्यान था (वण्णओ) वर्णन (जाव पुढविसिलापट्टओ वण्णओ) यावत् पृथिवीशिला पटक था (वण्णओ) वर्णन (तस्स णं गुणसिलयस्स चेहयस्स अदूर
ધમસ્તિકાય આદિ વિષે અન્ય યુથિકની વક્તવ્યતા'तेणं कालेणं तेण समएण'
सू - (तेणं कालेण' तेण समएणं ) ते णे भने ते समये (रायगिहे नाम नयरे होत्था) २०४] नामे में ना२ तु. (वण्णओ) तेनुं १४न ४२मु. (गुणसिलए चेइए) ते गुशिल नामे येत्य-(Gधान) तु. (वण्णओ) तेनुं १- ४२. (जाव पुढविसिलापट्टओ वण्णओ) त्यां
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
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